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अब जागो भारतवासी   जन जन जिनकी पुजा करतॆ  
चरैवेति चरैवेति यही तो मंत्र है अपना   दूर दूर गॉंवों में जाएं वनबन्धु को मिलाने  
जग उठा वनवासी अब तो, जग उठा वनवासी   वनवासी का संगठन कर ध्येय मार्ग पर चलते  
वैभवशाली भारत के हम स्वप्न देखती महिलाएं   धरती माता कितनी अच्छी  
आनंद भरें सबके जीवन में , जीवन के दिन चार   खेल खिलाडी खेल  
शारदे वर दें ! हमें करुणामयी आशिष दे   भारत बसता है गोवों में, चले आज हम गाँ  
जागृति का अभियान चल पड़ा   एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो !  
वनवासी वीरों की गाथा, आज सभी को सुनाएँ   हिन्दू विचार का हो सम्यक् समूह मंथन   
नगर ग्राम वन के हृदयों में अपनेपन का भावजागरण   संकल्प करें। वे धर्मकार्य है समदान हो. पुण्यकार्य है  
हे पुरूषार्थि ! कर्मयोगी हे ! प्रेरक तुम सब के, प्रेरक तुम सब के   मेरे वनवासी है महान  
कार्य करें वह कार्यकर्ता   कौन आदि है, सब अनादि है  

 


अब जागो भारतवासी

अब जागो……जागो रे जागो वनवासी
अब जागो…..जागो भारतवासी ।। धृ.।।

सरल सहज अपना जीवन है,
निर्मल जल सम अपना मन है,
किन्तु सजगता रखना ही तो (2)
समय का है संदेश………………।। 1।।

अब जागो……जागो रे जागो वनवासी
धर्म हमारे जीवन में है,
श्रद्धापूर्वक अड़ीग रखें है,
विधर्मी चाहे कितना कहते ? (2)
कैसे बदले भाई……………………..।। 2।।

अब जागो……जागो रे जागो वनवासी
पुरखों ने हमें मार्ग दिखाया,
ये जीवन ज़ीना सिखलाया,
ईश्वर देख रहा है सबकेा, (2)
कैसे जियें हम भाई…………………।। 3।।
अब जागो……जागो रे जागो वनवासी


जन जन जिनकी पुजा करतॆ

जन जन जिनकी पूजा करते
वन अंचल के देव हमारे
श्रद्धा मेरी दैवत सारे,
श्रद्धा मेरी दैवत सारे ।।धृ.।।

वृक्ष देव है पर्वत भी है
चंद्र देव है सूरज भी है
व्याघ्र देव नाग देव है
परमेश्वर के रूप सारे ।।1।।
श्रद्धा मेरी दैवत सारे ।।धृ.।।

नाम कई है रूप अनेकों
विध विध पूजा स्थान अनेकों
मार्ग भले ही भिन्न सभी के
सत्य एक है इतना जाने ।।2।।
श्रद्धा मेरी दैवत सारे (2)

कोई करे कैसे ही पूजा
कोई करे कैसे ही वंदन
ईश्वर सबके भाव देखते
ईश्वर मन की वाणी सुनते ।।3।।

श्रद्धा मेरी दैवत सारे (2)

वनवासी का धर्म नहीं है
इससे बढ़कर जूठ नहीं है
विदेशियों के षड्यंत्रों को
समझे और सबको समझाये ।।4।।
श्रद्धा मेरी दैवत सारे (2)


चरैवेति चरैवेति यही तो मंत्र है अपना

चरैवेति चरैवेति यहि तो मंत्र है अपना
नहीं रूकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना
यही तो मंत्र है अपना शुभंकर मंत्र है अपना।।धृ.।।

हमारी प्रेरणा भास्कर है जिनका रथ सतत चलता
युगों से कार्यरत है जो सनातन है प्रबल ऊर्जा
गति मेरा धरम है जो भ्रमण करना भ्रमण करना ।। 1।।

यही तो मंत्र है अपना शुभंकर मंत्र है अपना…
हमारी प्रेरणा माधव है जिनके मार्ग पर चलना
सभी हिन्दु सहोदर है ये जन-जन को सभी कहना
स्मरण उनका करेंगे हम समय दे अधिक जीवन का।।2।।

यही तो मंत्र है अपना शुभंकर मंत्र है अपना…
हमारी प्रेरणा भारत है भूमि की करे पूजा
सुजल सुफला सदा स्नेहा यही तो रूप है उनका
जिये माता के कारण हम करे जीवन सफल अपना।।3।।
यही तो मंत्र है अपना शुभंकर मंत्र है अपना…


दूर दूर गॉंवों में जाएं वनबन्धु को मिलाने

दूर दूर गाँवों में जाएं वनबन्धु को मिलने
स्वस्थ निरामय जीवन सबका भाव रहा है मन में ।। धृ.।।

घर घर पहुंचे सबको पूछे पिड़ा दुःख है कोई
स्नेहपूर्ण व्यवहार हमारा ऊंच नीच ना कोई
अपनेपन का भाव जगाने गिरी कंदर वन चलतें।। 1।।

उपचारों से स्वस्थ शरीर हो ये हमने देखा है
औषधी देकर धर्म बदलता ये कैसे होता है ?
वनवासी जीवन को समझे समरस हो हम सबसे।। 2।।

मैं करता हूँ मैं करता हूँ उचित भाव ये है क्या?
मिलकर सब हम कार्य करेंगे कर्मरूप में पूजा
समाजरूपी ईश्वर के हम साघक बन कर चलते।। 3।।


जग उठा वनवासी अब तो, जग उठा वनवासी

जाग उठा वनवासी अब तो जाग उठा वनवासी ।। धृ.।।

सूर्योदय हो जनजागृति का
प्रकाश फैला स्वाभिमान का
दूर निशा का अंधकार हो (2)
जागे भारतवासी …………..।। 1।।
अब तो जाग उठा वनवासी

विकास का आधार धर्म है
जोड सके वह सूत्र धर्म है
आज संगठन मंत्र धर्म है (2)
कहते है अविनाशी ।। 2।।
अब तो जाग उठा वनवासी

विधर्मी बैठा जाल बिछाए
भोलेपन का लाभ उठाए
सजग रहे गिरी वन के बन्धु (2)
कहते अपने साथी ……….।। 3।।
अब तो जाग उठा वनवासी


वनवासी का संगठन कर ध्येय मार्ग पर चलते

वनवासी का संगठन कर ध्येयमार्ग पर चलते
भरतभूमी के साधक है हम कार्य साधना करते
हम सब शक्ति अर्चना करते ।। धृ.।।

सर्वांगीण विकसित वनवासी लक्ष्य रखा है हमने
प्रकल्प उपक्रम कार्यक्रम ये साध्य नहीं साधन है
सही दिशा में समूह गति से आगे अब बढ़ना है।। 1।।
भरतभूमी के साधक है हम कार्य साधना करते

पूर्वांचल है, बस्तर है या रेवा तट के वन है
धैर्य परिक्षा उनकी होती जो इस पथ चलते है
सत्य आग्रही अनथक यात्री कार्यप्रवर रहना है।। 2।।
भरतभूमी के साधक है हम कार्य साधना करते

भीष्म प्रतिज्ञा भीम पराक्रम हम धृव सम है अविचल
कार्यशरण हनुमान सरीखे भक्त बने शबरी सम
हम गुणग्राहक हम परिव्राजक कार्य हमें करना है।। 3।।
भरतभूमी के साधक है हम कार्यसाधना करते


वैभवशाली भारत के हम स्वप्न देखती महिलाएं

वैभवशाली भारत के हम स्वप्न देखती महिलाएँ
वन अँचल के घर-घर पहुँचे, अनथक चलती महिलाएँ ।। धृ.।।

शक्तिस्वरूपा, स्नेहसुधा तु, सृजनशील ममतामूर्ति
संस्कारों को करे प्रवाहित जन जन के आधार बनी
अहर्निषम्, कृतिशील रही है, भारतीय ये महिलाएँ ।। 1।।
अनथक चलती महिलाएँ

संकट क्षण में अग्रेसर तु, रणक्षेत्रों में साथ चली
शस्त्रधार कर सेना लेकर, संस्कृति रक्षा कवच बनी,
असुरमर्दिनी दुर्गारूपी आर्यावर्त की महिलाएँ ।। 2।।
अनथक चलती महिलाएँ

पश्चिम की आँधी से अपनी, भरत भूमी है संकट में
समाज सारा प्रभाव में है, राष्ट्र चिती भी संकट में
भविष्य उज्वल तेरे कारण, संकल्पित ये महिलाएँ ।। 3।।
अनथक चलती महिलाएँ


धरती माता कितनी अच्छी

धरती माता कितनी अच्छी
सबका जीवन सुखमय करती
धरती माँ की पूजा करते
धान से अपना घर भर देती (2) ।। धृ.।।

खेतों में हमको श्रम करना है
किरपा होगी तब भिगना है
धरती पर जब सोना उगले
हिरवा की पूजा करनी है (2) ।। 1।।

एक ही दाना बोया हमने
देखो कितने दाने पाये
धरती माता सबको देती
ऋण उसका हम भूल न पाएँ (2) ।। 2।।

धर्म को समझे कहना माने
पुरखों का भी कहना माने
धरती की जो पूजा करते
डनको ही हम अपना माने (2) ।। 3।।


आनंद भरें सबके जीवन में , जीवन के दिन चार

आनंद भरे सबके जीवन में, जीवन के दिन चार
सभी नृत्य करें सभी गीत कहें, एक सूर एक ताल ।। धृ.।।

जीवन सारा उत्सव है, छोटीसी है बात
जो ना समझे सारे जन, रोते है दिन रात
अनपढ़ भी जाने जीवन के होते है रंग हज़ार ।। 1।।

हे नृत्य साधना जीवन की, ना केवल रंजन के साधन
हम शब्दब्रह्म के साधक है, करते है गीतों से अर्चन
वनवासी के नृत्य-गीत में संस्कृति हो साकार ।। 2।।

करमा होया या होली में ये गिरी-कंदर के नाचे जन
हम देख रहे है तन गति में, पर स्थिर हो रहे सबके मन
वनवासी है निर्मल मन के इसके ये है प्रमाण ।। 3।।


खेल खिलाडी खेल

खेल खिलाड़ी खेल (2)
हँसकर मिलकर, डटकर, बढ़कर ……..खेल खिलाड़ी खेल………।। धृ.।।

खेल स्वदेशी अपनाएँगे जनमानस तक पहूँचायेंगे
विजय पताका फहरायेंगे, स्वाभिमान का युग लायेंगे
खेलों की दुनिया में होगा …..
खेलों की दुनिया में होगा प्रथम हमारा खेल ।। 1।।

खेल खिलाड़ी खेल (2)
उछले, कुदे, जल में तैरे, बाधाओं के पथ पर दौडे़
योग, कबड्डी खो-खो खेलें, वनजों को ताकत से तोले
धनुष बाण से फिर साधेंगे एकलव्य का मेल ।। 2।।
खेल खिलाड़ी खेल (2)

सक्त भुजा हो, सशक्त कंधे आँधी में भी अविचल गति हो
रग रग में हो प्यार देश का खुली निगाहे अविचल गति हो
तन में बस हो, मन निर्मल हो……..
तन में बस हो, मन निर्मल हो, ज्यों बाती में तेल ।। 3।।
खेल खिलाड़ी खेल (2)

हार हुई तो मत घबराना, विजय मिली तो मत इतराना
वृत्ति खिलाड़ी भूल न जाना आज रूके तो कल बढ़ जाना
विजय पराजय जो भी आये
विजय पराजय जो भी आये, निर्भय हो के खेल ।। 4।।
खेल खिलाड़ी खेल (2)

खेलों में अद्भुत है क्षमता बढती है आपस में ममता
अटूट साहस धीरज समता, संस्कारों से रूप निखरता
इन्हीं गुणों से जीन सखेंगे, जीवन भर के खेल ।। 5।।
खेल खिलाड़ी खेल (2)

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शारदे वर दें ! हमें करुणामयी आशिष दे

शारदे वर दे ! हमें करूणामयी आशिष दे।
भवबन्ध के मुक्ति मिले माता हमें तू ज्ञान दे ।।धृ.।।

हंसासिनी पद्मासिनी
हे वीणावादिनी शारदे
शुभ्रवस्त्राधारिणी माता
हमें तू स्नेह दे ।। 1।।

ध्येय पथ के हमे है साधक
विनति कर कर जोड़ के
दी जो विद्या ज्ञान गुणनिधि
आज तेरे द्वार पे ।। 2।।


भारत बसता है गोवों में, चले आज हम गाँव

भारत बसता है गोवों में, चले आज हम गाँव
चले आज हम गाँव-गाँव में, चले आज हम गाँव ||ध्रु.||

विशाल मन है प्रेम सहज है
संस्कृति के दर्शन होते है
अपने बंधू से मिलने का
अवसर उत्सव आज …. || 1 ||
चले आज हम गाँव-गाँव में, चले आज हम गाँव….

घर आया वह देवतुल्य है
स्वागत करना परम भाग्य है
संस्कारों की सरिता बहती
जन-जन घर के द्वार || 2 ||
चले आज हम गाँव-गाँव में, चले आज हम गाँव….

जनजाति का समाज जीवन
सच में भारत का है दर्शन
सार्थक होगा वनयात्रा से
अपना जीवन आज …. || 3 ||
चले आज हम गाँव-गाँव में, चले आज हम गाँव….


जागृति का अभियान चल पड़ा

जागृति का अभियान चल पड़ा
करे आज परिवर्तन हम (2)
संघ शक्ति के शंखनाद से
गूंज रहा गिरीकंदर वन
करे आज परिवर्तन हम ।। धृ.।।

सज्जनशक्ति करे संगठित
कार्य करे देशोन्नति में
प्रगति के पथ चरण बढ़ रहे
सूर्य समान रहे गति में
भारत का भावि तेजोमय
यत्न करे सामूहिक हम ।।1।।
करे आज परिवर्त न हम

 

सत्य सदा विजयी होता है
केवल मात्र निमित्त बने
कर्म करे निरपेक्ष सदा ही
मन में साधक भाव रहे
चाहे कितने संकट भी हो
इस मार्ग पर चलते हम ।। 2।।
करे आज परिवर्त न हम

 

जन जन सारा अपना है जो
मन में स्नेह भरा निर्झर
बन्धूभाव आधार कार्य का
जोड़ सके हम मन से मन
अपना दूजा नहीं है कोई
समरसता के वाहक हम ।। 3 ।।
करे आज परिवर्तन हम


वनवासी वीरों की गाथा, आज सभी को सुनाएँ।

वनवासी वीरों की गाथा आज सभी को सुनाएँ
गौरवपूर्ण अतित है अपना स्वाभिमान से गाएँ (2) ।। धृ.।।

हल्दीघाटी में राणा को भीलों ने ही साथ दिया था
हिन्दू रक्षक शिवबा को भी वनपुत्रों ने साथ दिया था
बिरसा के उन बलिदानों की कथा सभी को सुनाएँ।। 1।।
गौरवपूर्ण अतित है अपना स्वाभिमान से गाएँ (2)

सोमनाथ का रक्षण करने भील वेगडा आगे आए
सिद्धो कान्हो दुर्गारानी देश धर्म रक्षक कहलाए
जादो शंभु के जीवन की कथा सभी को सुनाएँ ।। 2।।
गौरवपूर्ण अतित है अपना स्वाभिमान से गाएँ (2)

विदेशियों के षड्यंत्रों से सत्य अभी तक दबा पडा था
सम्मानित हम करे आज फिर जो जन मन का प्रेरक बल था
शौर्य पराक्रम की गाथाएँ आज सभी को सुनाएँ ।। 3।।
गौरवपूर्ण अतित है अपना स्वाभिमान से गाएँ (2)

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एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो !

एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)
हम-तुम यह भेद मिटे सारे अलगाव हटे
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)
भ्रातृभाव आधारित समरसता हो !
बन्धुभाव आधारित समरसता हो !

एक ब्रह्म सब में है एक चेतना
छूआछूत की फिर क्यों भ्रान्त धारणा
शिव, राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर भी
नानक, बिरसा, कबीर सबके है सभी
जाति पंथ भेट मिटे ऊँच नीच भाव हटे
धर्म बोध हो ! धर्म बोध हो !
आत्मीयता आधारित समरसता हो !
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)

रामेश्वर, जगन्नाथ, बद्री, द्वारिका
आस्था के केन्द्र यही सबकी भावना
हम नहीं है भिन्न अपितु विविध है
पंथ अलग-अलग किन्तु मंत्र एक है
सब समाज साथ रहे सेवा सहकार रहे
संघ भाव हो ! संघ भाव हो !
संगठना आधारित समरसता हो !
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)

वनवासी, ग्रामवासी नगर निवासी
हम सब है हिन्दू जो भारतवासी
एक राष्ट्र संस्कृति है एक हमारी
भारत माँ ही माता एक हमारी
भाषा के वाद मिटे प्रांत, वर्ग भेट मिटे
राष्ट्र बोध हो ! राष्ट्र बोध हो !
राष्ट्रीयता आधारित समरसता हो !
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)

हम-तुम यह भेद मिटे सारे अलगाव हटे
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (2)
भ्रातृभाव आधारित समरसता हो !
बन्धुभाव आधारित समरसता हो !
एक्य बोध हो ! एक्य बोध हो ! (4)

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नगर ग्राम वन के हृदयों में अपनेपन का भावजागरण

नगर ग्राम वन के हृदयों में अपनेपन का भावजागरण धृ॥

एक हमारा धर्म सनातन
एक संस्कृति उच्च धरोहर
एक रहे स्वर एक रहे सुर
समरसता का भावजागरण
अपने पन का भावजागरण ॥१॥

वनवासी बन्धु का जीवन
सुख – सुविधा के अभाव में है
अपना मन संकल्प करे तब
बन्धुप्रेम का भावजागरण
अपनेपन का भावजागरण. ॥ २॥

शिक्षा दीपक के प्रकाश में
सबका जीवन तेजोमय हो
संस्कारों की एक किरण से
हृदयों में हो भावजागरण
अपनेपन का भावजागरण ॥ ३॥

अतीत का आदर्श सामने
दीन भावना दूर करें हम
उठकर चलने का साहस हो
स्वाभिमान का भावजागरण
अपने पन का भावजागरण. ॥ ४॥


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हिन्दू विचार का हो सम्यक् समूह मंथन


हिन्दू विचार का हो
सम्यक् समूह मंथन
निज कार्य का करे हम
समयानुकूल चिंतन ।। धृ।।

चिंतन परम्परा का ये मार्ग है पुराना
आचार्य संत ऋषिगण आदर्श है हमारा
जिस मार्ग पर चले हम आधार हिन्दू दर्शन ।। 1।।
समयानुकूल चिंतन (2)

देखें अतीत में हम हो कार्य की समीक्षा
है योग्य मार्ग अपना विश्वास है सभी का
रूकना नहीं हमें है गतिशीलता है जीवन ।। 2।।
समयानुकूल चिंतन (2)

नूतन विचार करना कल्पक रहे सदा हम
चैतन्ययुक्त मन हो कृृतिशील हो सदा हम
निश्चित विजय हमारी बढ़ते रहें सदा हम ।। 3।।
समयानुकूल चिंतन (2)

संकल्प करें कृतीशील बने

संकल्प करें। वे धर्मकार्य है
समदान हो. पुण्यकार्य है,
शक्ति हम वीरवती हम
अनधक अविरत कार्य करे… संकल्प करें ।। धृ।।


अमृतपुत्र इसी धरती पर
युग युग से रहते आए
देव हमारे विविध रूप में
प्रकृति के पूजक सार
हिन्दू होने का गौरव है एक सभी के स्वर गूजे.. सकल्प करे ।।1 ।।

 

देवासुर संग्राम चल रहा
धर्म पक्ष में हम सारे
रामप्रभू की जय जय कहते
मारुतिनंदन बन जाए
भस्म करें असुरों की लंका
धर्म ध्वजा फिर लहराए संकल्प करें ।।2 ।।

परिव्राजक हम गुणग्राहक हम
सतत प्रवासी है सारे
जन मन को संस्कारित करने
वन पर्वत में भ्रमण करें
सर्वांगीण विकसीत वनवासी
लक्ष्य प्राप्ति हित कार्य करें…. संकल्प करें ।।3 ।।

 

हे पुरूषार्थि ! कर्मयोगी हे ! प्रेरक तुम सब के, प्रेरक तुम सब के 

हे पुरूषार्थि ! कर्मयोगी हे !
प्रेरक तुम सबके, प्रेरक तुम सबके ।। धृ.।।


इस भूमि के संस्कारों की
सुगंध फैली गिरीकंदर में,
आप चलें चैतन्य चलाजो,
पथदर्शक तुम थे। ।। 1।।

प्रेरक तुम सबके…….
भय से व्याप्त वनंाचल जब था,
कहीं नहीं देखी निर्भयता,
संकट की बेला में तुम तो
निर्णायक होते ।। 2।।

प्रेरक तुम सबके………….

सच कहने का साहस देखा,
मन में स्नेह रूप में सरिता,
भावजागरण करने निकले,
वनयोगी तुम थे ।। 3।।
प्रेरक तुम सबके…………


कार्य रूप में अंजली देकर
जन्मशती का आयोजन कर
धन्य हुए हम सबके जीवन,
इस पथ पर चलते।। 4।।
प्रेरक तुम सबके……….


मेरे वनवासी है महान

मेरे वनवासी है महान (2)
जो देश धर्म संस्कृति रक्षक
मूर्त रूप में स्वाभिमान
मेरे वनवासी है महान । धृ.।।


जब जन-जन पर संकट आएँ
प्रत्येक धनुष से तीर चलें
प्रत्येक युवक तिलका मांझी बन
संघर्षों में कूद पडे़
ना हार मानी, लढ़ना जाने (2)
इतिहास कहे रहा बार-बार ।। 1।।
मेरे वनवासी है महान ….

पूंजा राणा जो साथ लढे़
टंट्या मामा दिन-रात लढे़
सिद्धू-कान्हू का शौर्य अमर
बिरसा अपने भगवान बने
ये प्रेरक जीवन गाथाएँ (2)
ले चले आज हम गाँव-गाँव ।। 2।।


मेरे वनवासी है महान …
उस त्याग शौर्य के जीवन को
हृदयों में अंकित हम करते
हम अनुगामी हम कार्यप्रवर
कंटक पथ पर हम चलते
उन वीरों की पावन स्मृति को (2)
वंदन करते बार-बार ।। 3।।
मेेरे वनवासी है महान ….(2)

 


कार्य करें वह कार्यकर्ता

कार्य करें वह कार्यकर्ता
कर्म बड़ा ही महान है (3) ।। धृ.।।


कथनी का अपना महत्व है
करनी फिर भी सदा श्रेष्ठ है
कथनी करनी साथ रहे तो
शक्ति अपरम्पार है ।। 1।।

कर्म बड़ा ही महान है (2)

गीता का उपदेश कर्म का
पग पग में चैतन्य प्रगटता
आलस कैसा कर्मवीर को
कल करना सो आज है ।। 2।।
कर्म बड़ा ही महान है (2)

आश्रम के इस पूण्य कार्य में
अपना जीवन समिधा होवे
सामूहिक हो कर्म साधना
कर्म स्वयं भगवान है ।। 3।।
कर्म बड़ा ही महान है (2)


कौन आदि है, सब अनादि है

कौन आदि है,
सब अनादि है,
हम सब भारतवासी है,
पुरखें सबके खून एक है
नगर ग्राम वनवासी है।
हम सब भारतवासी है ।। धृ.।।

राजमहल का मोह छोड़कर बरसों दुर्गम राह चलें
फलों की सेजों के बदले, काटों पर ही कदम पड़े
केवट ने प्रभू पाव पखारे निषाद राजा फूट पड़े
चित्रकूट क्या, पंचवटी सब, गिरी वन सर नद झूम पडे
शबरी के बेरों को खाने, राम बने वनवासी है
पुरखे सबके खून एक है. ।। 1।।

हाथी के हौदेपर चढ़कर दुर्गा का अवतार लड़ी
दो हाथों में तलवारे ले अरि मुण्डों पर टूट पड़ी
नारायण के दल विक्रम को अजर अमर रणशौर्य घड़ी
बलवीरों की खड़ग धार भी, रिपुदल पर सब बरस पड़ी
गढ़ मंडला की रानी दुर्गा रणचंडी वनवासी है
पुरखे सबके खून एक है….. ।। 2।।

परचक्रों की आँधी आई क्रूर पाशवी विपदा आई
वीर शिवाजी के इंगित पर मचल उठी सारी तरूणाई
सहयाद्री ललकार उठा और सागर में नव ज्वार उठा
धरती का अभिमान जगा तब, पर पशुता का पाश मिटा
शिव स्वराज्य पर हुए समर्पित, भारत के वनवासी है
पुरखे सबके खून एक ।। 3 ।।

उपक्षितों की सेवा करने, गिरी जंगल की ओर बढ़े
स्वजनों की अनुभूति जगाने समरसता के भाव उठे
न्हीं प्रलोभन मिटा सकेंगे राष्ट्रभक्ति साकार बने
देश धर्म पर अविचल निष्ठा झंझा में भी अडिग रहे
भाषा कितनी भूषा न्यारी फिर भी भारतवासी है
पुरखे सबके खून एक ।। 4 ।।


तरूणाई का नूतन जागर सूर्य तेज सा छाया

तरूणाई का नूतन जागर सूर्य तेज सा छाया
युव जन जागे भारत जागा, धरती अंबर जागा ।। धृ.।।

भरत भूमि पर संकट छाया, अलगवाद की आंधी
संस्कृति पर जो हुआ आक्रमण, भारत माँ सिसकाती
माता के आसुं जब देखे शक्ति उपासक जागा……. ।। 1।।

स्मरण करे हम वीर पुरूष वह, नागभूमि के जादो
शक्तिस्वरूपा रानी माँ को शंभु के पौरूष को
ब्रह्मपुत्र का गर्जन सुनकर पूर्वांचल अब जागा……. ।। 2।।

भरत भूमि की अखंडता का लक्ष्य सदा हृदयों में
लक्ष-लक्ष युवकों के जीवन अर्पित इस वेदी में
जीवन सारा भारत मय हो सब समाज अब जागा…… ।।3।।