हमारी समर्पण वृत्ती एक सैनिक जैसी है – भगवान सहाय

भाग्यनगर में सम्पन्न हुआ नगरीय कार्य आयाम का अखिल भारतीय प्रशिक्षण वर्ग

वनवासी कल्याण आश्रम के विभिन्न आयामों में एक है नगरीय कार्य आयाम। नगर-महानगरों में समितियों के माध्यम से हम कार्य कर रहे है। उन समितियों के कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण हेतु भाग्यनगर (हैदराबाद-तेलंगानाद्) में एक प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया। इस वर्ग में कल्याण आश्रम के मार्गदर्शक सोमयाजुलु, नगरीय कार्य के संरक्षक किशनलाल बंसल (मुम्बई), अखिल भारतीय नगरिय कार्य प्रमुख शंकरलाल अग्रवाल (कोलकाता), सह प्रमुख भगवान सहाय (दिल्ली) उपस्थित रहे। दो दिवसीय इस प्रशिक्षण वर्ग में 21 प्रांतों से 20 महिला और 81 पुरूष कार्यकर्ताओं की सहभागीता रही।

उद्घाटन सत्र में भगवान सहाय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अपने कार्यकर्ता का समर्पण एक सैनिक जैसा है। हमें अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम है इसलिये तो हम इस कार्य से जुडे़ है।

अखिल भारतीय नगरीय कार्य प्रमुख शंकरलाल ने सूत्र में कहा – हमारी कार्यपद्धति में तीन S है। सम्पर्क, संगठन और सहयोग। अपना कार्यकर्ता नियोजन के साथ, समय निकालकर कार्य कर रहा है। हमें समाज को कार्य की आवश्यकता बताना है।

कार्य के सरंक्षक किशनलाल बसंल ने कहा की नगरीय कार्य रीड् की हड्डी जैसा महत्वपूर्ण है। प्रणय दत्त ने कहा की हमें जनजाति क्षेत्र में जो भगत, पाहन जैसे धार्मिक कार्य में कार्यरत श्रेष्ठी है उनका नगरों बुलाकर सम्मान करना चाहिये। वे जनजाति समाज को संस्कृति और परम्पराओं के साथ जोडे़ रखते है। कोलकाता की महिला कार्यकर्ता सीमा रस्तोगी ने कोलकता में चल रहे कार्य की जानकारी देते हुए सबको उत्साहित किया। उन्होंने कहा की तीन प्रकार के कार्यकर्ता अपने संगठन में है-एक नियमित कार्यरत, दुसरे कार्यक्रमों के समय कार्यरत और तीसरे संसाधन  जुटानेवाले। बंगलुरू के गोपाल केसरी ने अपने कार्य में युवाओं की सहभागीता, उनकी शक्ति का उपयोग इस बात पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की अपने कार्य का डाक्युमेन्टशन, वनवासी विद्यार्थियों को पढ़ाई में मार्गदर्शन एवं कान्सुलिंग में युवाओं को हम कार्यरत कर सकते है।

समापन सत्रा में अखिल भारतीय मार्गदर्शक सोमयाजुलु ने कहा कि वर्तमान में दो विचारधारा कार्य कर रही है – एक भारतीय और दुसरी अभारतीय। अभारतीय विचारों के कारण समाज में भ्रम निर्माण होते है। जनजाति समाज में कुछ लोग आज अलग धर्म कोड़ की बात कर रहे है, ये इसी का परिणाम है। उन्होंने समर्थ रामदास की उत्की का उल्लेख करते हुए कहा कि बिना भ्रमण किये कार्य नष्ट होता है। हमें समाज जोड़ने का कार्य करना है। इस हेतु हमें दूर-दूर गाँवों तक जाना है, नगरों में समाज को इस हेतु कार्य के साथ जोड़ना है।   

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