दूर खडे़ रहकर, दर्शक न बने सेवा के लिए आगे आए….

– डॉ. पंकज भाटिया

वनवासी कल्याण आश्रम पूरे देश के 11 करोड़ जनजाति समाज के लोगों के बीच में कार्य करने वाली विश्व की सबसे बड़ी संस्था है।
जनजाति समाज भारत के जंगलों में ,दूरस्थ गांव में निवास करता है, समय के साथ में प्रगति के कारण शहरों में भी काफी जनजाति समाज के लोग रहने लगे हैं पर अभी भी 80% से अधिक आबादी वनों में ही रहती है इसलिए हम लोग जैसे शहर में रहने वाले को शहरवासी या गांव में रहने वाले को गांववासी और जनजाति समाज जो वनों में रहते हैं उनको वनवासी कहते हैं, इतिहास गवाह है कि इस समाज ने चाहे राम का युग हो या राणा प्रताप के साथ में या शिवाजी के साथ में भारत विरोधी शक्तियों से लड़ने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई शिवाजी के संग मावले लड़े राणा प्रताप के संग भील और राम के साथ में तो लगभग पूरा वनवासी समाज कंधे से कंधा लगा कर रावण से लड़ा । आज भी भारत की अस्मिता को बचाने के लिए उसी वनवासी समाज को हनुमान की तरह जागृत करने की जरूरत है जिससे भारत की अस्मिता के शत्रु हार मान जाए और भारत माता को फिर से हम एक बार विश्व गुरु के सिंहासन पर स्थापित कर सके
वनवासी सभ्यता ही हमारी पुरातन संस्कृति है जिस को जागृत करने के लिए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम 1952 से कार्यरत है 1952 से छत्तीसगढ़ के जशपुर नगर में प्रारंभ होने वाला और 1978 से पूरे देश के वनवासी क्षेत्रों में कार्य करने वाला वनवासी कल्याण आश्रम 40 प्रांतो में अलग-अलग नामों से काम करता है, पूरवी उत्तर प्रदेश में सेवा समर्पण संस्थान इसी कार्य को कर रहा है
आज भी वनवासी समाज के स्वास्थ्य की हालत ठीक नहीं है जहां एक ओर 1 साल के अंदर बच्चों के मरने की संख्या अर्थात आईएमआर 38 आ गया है वही जनजाति समाज में आज भी कई क्षेत्रों में यह संख्या 100 से ऊपर है जिसे प्डत् कहते हैं इन्फेंट मोर्टालिटी रेट इसी प्रकार औसत आयु की ओर देखें तो बस्तर में रहने वाली महिला की जनजाति समाज की महिला की आयु सबसे कम है जो 34 से 40 साल ही जीवन के व्यतीत कर पाती है !


Lights

स्वास्थ्य शिविर

 

पूरा जनजाति समाज एनीमिया अर्थात खून की कमी पेट में कीड़े मलेरिया और खुजली इन इन रोगों से लड़ रहा है अब तो कई स्थानों पर हाई ब्लड प्रेशर और हृदय के रोगी भी मिलने लगे हैं इसके साथ ही किडनी में पथरी और डायबिटीज के रोगी भी प्रचुर मात्रा में पूरे वन क्षेत्रों में मिल जाते हैं ।इन सभी क्षेत्रों में दूध भी उपलब्ध नहीं रहता है जिसके कारण रतौंधी व विटामिन की कमी से जनित रोग जैसे मुंह में छाले बदन में खुजली व कमजोरी भी प्रचुर मात्रा में होती है मैंने भी प्रथम बार लोहरदगा झारखंड के वन क्षेत्रों में विटामिन ए की कमी से होने वाली रतौंधी के कारण आंख में उत्पन्न Bitia spot पहली बार देखें और अमेरिका से आए भारतवंशी श्री विनोद प्रकाश जी को 1992 में दिखाएं जो आश्चर्य चकित रह गए उसके बाद कई वर्षों तक उन क्षेत्रों में विटामिन ए की गोली का वितरण का कार्यक्रम उनकी मदद से चला स

Service Project at a Glance (All India)

वनवासी कल्याण आश्रम की स्वास्थ्य गतिविधियां मुख्य रूप से पांच भागों में विभक्त कर सकते हैं प्रथम दूरस्थ गांव में लगभग 2000 डॉक्टरों की मदद से प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ हजार स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं जिनमें सामान्य स्वास्थ्य शिविर, सर्जिकल स्वास्थ्य शिविर और विशेष स्वास्थ्य शिविर जैसे नेत्र रोगियों के स्वास्थ्य शिविर या खुजली निवारण के स्वास्थ्य शिविर या पेट संबंधी दवाओं के वितरण के स्वास्थ्य शिविर होते हैं, लोहरदगा स्थित विरसा सेवा सदन मैं प्रतिमाह दो बार मोतियाबिंद ऑपरेशन के शिविर होते हैं जहां पर रांची से आकर नेत्र सर्जन ऑपरेशन करते हैं इसी प्रकार और भी स्थानों पर नेत्र शिविर लगाए जाते हैं आसाम में अपने कार्यकर्ता जो मोहन भगत वहां के संगठन मंत्री हैं वह डॉक्टर ओम प्रकाश टंडन वर्षों से गांव में से नेत्री रोगी छांट कर लाते हैं और लायंस क्लब और रोटरी क्लब की मदद से गुवाहाटी में इनके ऑपरेशन होते हैं

कई स्थानों पर NMO, JIMA की सहायता से स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं जैसे राजस्थान में इसी वर्ष 15 अगस्त को राजस्थान के 7 मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर से इकट्ठे हुए और उदयपुर के वनवासी क्षेत्रों में बरसात के दिनों में जब अधिक रोगी होते हैं उन दिनों शिविर लगाते हैं

विभिन्न आपातकालीन अवस्थाओं में भी वनवासी कल्याण आश्रम शिविर लगाता है जैसे सुनामी के समय अंडमान निकोबार में चिकित्सा शिविर वह एक चिकित्सालय की स्थापना की गई इसी प्रकार इस वर्ष आसाम में बाढ़ राहत के समय आसाम में 12 शिविर मध्य प्रदेश से आई डॉ शशि डॉ प्रीति वाला छत्तीसगढ़ से आए डॉ रवि कुमार सिंह वह डॉक्टर भगत और उत्तर प्रदेश आगरा से आए डॉ सुनीता पंजवानी और अन्य चिकित्सकों ने जाकर आसाम के बाढ़ राहत शिविर लगाए इसी प्रकार केरल में जब बाढ़ आई थी तब मुतिल स्थित कार्यकर्ताओं ने स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन के साथ में मिलकर पूरे केरल में विभिन्न स्वास्थ्य शिविर लगाए ।
दूसरी प्रकार की अपनी स्वास्थ्य गतिविधि दूरस्थ के गांव में प्रारंभिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु वहीं गांव के रहने वाले महिला पुरुषों को प्रारंभिक स्वास्थ्य अर्थात फर्स्ट एड की जानकारी देते हैं और उन्हें एक दवाई की किट भी उपलब्ध कराते हैं जो अपने स्वास्थ्य रक्षक कहलाते हैं ऐसे कार्यकर्ताओं की संख्या अब लगभग पूरे देश में 4000 है । उत्तराखंड में लगभग अपने स्वास्थ्य के 300 कार्यकर्ता है जो दूरस्थ पहाड़ी गांव में ट्यूशन सेंटर चलाते हैं वह प्रारंभिक स्वास्थ्य भी उपलब्ध करवाते हैं इन कार्यकर्ताओं द्वारा धर्मांतरण पर भी काफी हद तक रोक लगी है ।

सिक्किम में कई वर्ष पहले जब भूकंप आया था तो इन्हीं कार्यकर्ताओं ने काफी कार्य किया था जिसकी प्रशंसा वहां की सरकार ने भी की थी सर्वाधिक अपने स्वास्थ्य कार्यकर्ता महाराष्ट्र में है जो लगभग पूरी तरह से आयुर्वेदिक किस पर निर्भर रहते हैं केवल पेरासिटामोल की गोली के साथ में व अन्य जड़ी बूटियों के सहयोग से हजारों रोगियों को ठीक करते हैं ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रतिवर्ष प्रशिक्षित किए जाते हैं जिसमें विभिन्न डॉक्टरों का सहयोग होता है

 

तीसरी प्रकार की गतिविधि में अपने प्रारंभिक चिकित्सा केंद्र हैं जो पूर्णकालिक चिकित्सकों के द्वारा दैनिक चिकित्सा केंद्र व साप्ताहिक चिकित्सा केंद्र के रूप में चलाए जाते हैं जिसमें अन्य सहयोगी चिकित्सक भी सहयोग करते हैं।
अपने लगभग 31 दैनिक केंद्र व 131 साप्ताहिक चिकित्सा केंद्र चलते हैं कई स्थानों पर जैसे विदर्भ में सहयोगी चिकित्सकों की मदद से साप्ताहिक चिकित्सा केंद्र मेलघाट नामक स्थान पर जिसमें कई वर्षों पूर्व 1997 में भूख के कारण कई बच्चों की मृत्यु हुई थी ऐसे स्थान पर चलाए जाते हैं

अपने कल्याण आश्रम में लगभग 24 चल चिकित्सा वाहन भी है जिनकी मदद से विविध वन क्षेत्रों में जैसे कर्नाटक में और आंध्र प्रदेश में तेलंगाना में जसपुर में चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है, यह वाहन दूरस्थ गांव से में जाकर जनजाति समाज के लोगों को चिकित्सा उपलब्ध कराते हैं । यही योजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के भभनी नामक केंद्र पर डॉक्टर सुमन द्वारा वर्षों से चलाई जा रही है ।यह योजना अन्य प्रांतों में अच्छे से चलाई जा सकती है।

 

वनवासी कल्याण आश्रम और अन्य सहयोगी संस्थाओं के द्वारा लगभग 14 अस्पताल भी चलाए जाते हैं जिसमें केरल स्थित विवेकानंद मेडिकल मिशन मुतिल में स्थित चिकित्सालय है जो पूर्व संगठन मंत्री भास्कर राव के द्वारा प्रारंभ किया गया था ।लोहरदगा स्थित बिरसा सेवा केंद्र है जो 1971 से डॉक्टर शिलेदार दंपत्ति द्वारा नागपुर से आकर प्रारंभ किया गया था जशपुर स्थित कल्याण आश्रम धर्मार्थ चिकित्सालय 1965 से कार्यरत है जो शिवम नागपुर से गुरु जी द्वारा नारायण वैद्य को लाकर प्रारंभ कराया गया था ।अभी वर्तमान अवस्था में उत्तराखंड में 8 नवीन चिकित्सालय विवेकानंद मेडिकल सोसायटी द्वारा प्रारंभ किए गए हैं जिस पर गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ बद्रीनाथ में 10 बिस्तर वाला चिकित्सालय शामिल है इन सभी चिकित्सालयों में दिल्ली स्थित डॉक्टर त्यागी के चिकित्सक नियमित सेवाएं दे रहे हैं लगभग ढाई सौ चिकित्सक प्रतिमास विभिन्न सर्जिकल व अन्य तरह के शिविर लगाते हैं इन सब का कार्य देखने के लिए डॉ अनुज सिंघल श्रीमती तारा निरंतर प्रयास करते हैं आगरा और दिल्ली से काफी मात्रा में चिकित्सक जुड़े हुए हैं इनके सचिव डाक्टर राकेश त्यागी जो पहले अरुणाचल में रहे सक्रिय भूमिका निभाते हैं

Lights

चिकित्सालय

 

 

हैदराबाद स्थित डॉक्टर मुकुंद करमलकर जो हृदय रोग विशेषज्ञ हैं बस्तर में जाकर प्रति माह 3 दिन शिविर लगाते हैं जिनका सहयोग वहां अपने डॉ राम गोडबोले और उनकी पत्नी के मदद से बस्तर वासियों की सेवा की जा रही है इसी प्रकार डॉक्टर उदय यार्दे जो सर्जन है और उनकी पत्नी डॉ सुनीता यार्दे जो रतलाम की मेयर है जसपुर जाकर प्रति वर्ष तीन से चार बार फ्री ऑपरेशन करते हैं अन्य जगह से भी चिकित्सक निकल कर प्रतिवर्ष दूसरे प्रांतों में जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देना प्रारंभ किए हैं, जिसमें नासिक से डॉ भरत केलकर,डॉक्टर बाबूलाल अग्रवाल व उनके सहयोगी इसी प्रकार मध्य प्रदेश से डॉ शशि ठाकुर और उनके सहयोगी महाराष्ट्र से डॉक्टर अनिल और उनके सहयोगी व दिल्ली स्थित बहुत सारे चिकित्सक और आगरा के डॉक्टर राजकुमार गुप्ता और उनके सहयोगी प्रमुख है अभी हाल में ही गुवाहाटी व अगरतला के चिकित्सकों ने भी तय किया है कि वे प्रतिमास अपने वनवासी क्षेत्रों में शिविर लगाएंगे व अन्य प्रांतों में जाकर भी शिविर लगाएंगे
वनवासी क्षेत्रों में जड़ी बूटी का ज्ञान भरा हुआ है इसको ऊपर लाने के लिए विभिन्न स्थानों पर जड़ी-बूटी सम्मेलन या वनवैद्य सम्मेलन किए गए जिस में महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ में जशपुर राजस्थान प्रमुख रहे इन वनवैद्यों को छत्तीसगढ़ में फारेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा आईडेंटिटी कार्ड भी उपलब्ध कराए गए ।

Service Project at a Glance (All India)

इन्हीं सम्मेलनों में मलेरिया ना होने की कई युक्तियां प्राप्त हुई जिसमें प्रमुख है यदि हम दो नीम की पत्ती 2 वर्ष तक खाते हैं तो जीवन भर हमें मलेरिया नहीं होगा इसी प्रकार चिरायता या भुई नीम का काढ़ा प्रतिमा पीते हैं तो भी मलेरिया नहीं होता है एक अन्य युक्ति जो बड़े लोगों को ही करनी चाहिए का कई जगह सफल उपयोग हुआ है जिसमें मदार के पौधे की जिसको छत्तीसगढ़ में आंख फूटी भी कहते हैं 9 इंच की डंडी लेकर देसी गाय के दूध में उबालकर उसके बचे हुए पदार्थ को लेने से लगभग 9 वर्ष तक मलेरिया नहीं होता है मैंने भी यह उपयोग किया जिससे मेरे को लगभग 25 वर्ष से मलेरिया नहीं हुआ है ।

इस प्रकार पूरे भारत में अपनी गतिविधियों के द्वारा लगभग 12 से 15लाख मरीजों की हम सेवा कर पाते हैं, आज आवश्यकता इस बात की है कि वनवासी समाज के दर्द को वहां पर रहने वाले चिकित्सक समझें और इन क्षेत्रों में जाकर उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति सचेत करें इसमें हम स्वास्थ्य सेवाएं यात्राओं की मदद से स्वास्थ्य शिविरों की मदद से या चल चिकित्सालयों की मदद से भरपूर सेवा कर सकते हैं प्रारंभिक गांव में रहने वाले प्रारंभिक चिकित्सा देखकर स्वास्थ्य कार्यकर्ता योजना भी प्रारंभ कर सकते हैं ।

अंधेरा कोसने से
खत्म नहीं होगा
आओ मिलकर
एक दीप जलाएं
बुराई कहने से
कभी खत्म नहीं होगी
आओ कुछ
नेक काम करें
दानवता कहने से
कभी खत्म नहीं होगी
आओ मानवता के
सोपान चढ़े आओ

आज जनजाति समाज के आंसुओं को पहुंचे और ‘तू मैं एक रक्त’ की भावना को आत्मसात करें ।

लेखक वनवासी कल्याण आश्रम के
अखिल भारतीय चिकित्सा आयाम प्रमुख है।

For More News

 

We Are Social