असम्भव कुछ भी नहीं

आन्ध्र प्रदेश के ‘पहाड़ी महिला-पुरूष’ लगें रास्ता बनाने

ये समाचार है छोटे, परन्तु बडे़ प्रेरणादायक है। अन्यों के लिए अनुकरणीय भी है। देश के जनजाति क्षेत्र में सड़क बनाने का काम वैसे सरकार के लोक निर्माण विभाग का है परन्तु समाज ने एकत्रित आकर यदि ऐसा कोई काम हाथ में लिया तो असम्भव कुछ भी नहीं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, मार्ग निर्माण, पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन जैसे कई चुनौती भरे काम है जो गाँव के युवकों ने एकत्रित मिल बैठकर तय करना और प्रत्यक्ष क्रियान्वित कर, सबके समक्ष एक उदाहरण रूप में प्रस्तुत करना, यह समय की आवश्यकता है। आंध्र प्रदेश के इन ग्रामीणों ने देश के समक्ष जो उदाहरण प्रस्तुत किया वैसा अतीत में पहले भी कभी न कभी हुआ है। बिहार के दशरथ माझी ने भी अपने गाँव जाने हेतु पहाड़ को खोद कर रास्ता बनाया था। वैसे ये प्रयास भी सभी को कार्य प्रेरणा देगें ऐसा हमें विश्वास है। – सम्पादक

वर्षों तक सरकार की ओर से दुर्लक्ष होने पर स्थानीय जनजाति समाज ने अपने स्वयं के प्रयासों से सुदूर पहाड़ों में घाट का रास्ता बनाना शुरू किया, जो उनके ग्रामीण क्षेत्र को विशाखापट्टण के साथ जोड़ सके।
9 गाँवों के जनजाति लोगों ने स्थानीय उपलब्ध सामग्री को एकत्रित कर तीन सप्ताह तक परिश्रम करते हुए 7 कि.मी. का कच्चा रास्ता बनाया। इसके चलते पूर्वी घाट के दुर्गम स्थानों में जाने की सुविधा हुई। पास की पंचायत से सम्पर्क स्थापित करने 15 कि.मी. का रास्ता बनाने के सिवा इनके पास और दूसरा कोई विकल्प नहीं था। इन 250 परिवारों के 1500 व्यक्तियों का अनुभव कहता है कि कई बार प्रयास करने पर भी कोई मदद नहीं मिल रही थी। वैसे भी इन जनजाति परिवरों तक बिजली तथा चिकित्सा सेवाएँ आजतक पहुँची नहीं है। प्रत्यक्षर्शियों का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को निकटतक स्वास्थ्य केन्द्र पर लेना जाना भी पड़ा कठिन है।
रास्ता बनाने का यह कार्य चार जनजाति युवकों से प्रारम्भ हुआ। चार में से एक, पदुवला बुचाना ने कहा,‘हम चारों ने पहाड़ों की आसपास की बस्तियों के निवासियों को प्रेरित किया। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि हमारे प्रयासों को अच्छी सफलता मिली।’
इन जनजाति लोगों ने 23 जनवरी को काम प्रारम्भ किया और लगभग 3 सप्ताह तक परिश्रम कर 7 कि.मी. लम्बा रास्ता बनाया। प्रतिदिन 2.5 कि.मी. का रास्ता बनाने वाले समूह की रचना कर बारी-बारी से काम किया। इससे एक दूसरा लाभ भी हुआ कि मुका डोरस, कोंडा डोरस और कोंडस ऐसे तीन जनजाति के समुदाय एक हुए। यह अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
राज्य सरकार ने छत्म्ळै अनुदान अंतर्गत 2018-19 में 40 लाख रूपये मंजूर किए थे। समाज ने स्वयं किये इन प्रयासों के पश्चात जनजाति समाज के लिए बनी परियोजना के निदेशक डी. के. बालाजी ने कहा कि इस सडक परियोजना को छत्म्ळै के तहत लाकर इसमें सहभागी सभी को उनके श्रम का भुगतान किया जाएगा। उन्होंने एक बात और कही कि यह रास्ता कच्चा बना है जो वर्षा काल में पानी गिरते ही धुल जाएगा और यहाँ कीचड़ का रास्ता बन जाएगा। हम इसे पूरी तरह पक्की सड़क बनाने के लिए योजना बना रहे है।’
साभार: Time Of India

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