एक विरल व्यक्तित्व से मिली प्रेरणा
और हम चल पडे…

26 दिसम्बर 1952 में वर्तमान छत्तीसगढ के जशपुर नगर में तत्कालीन राजा विजय भूषण देव जी के सहयोग से केवल 13 वनवासी बालकों का एक छोटा सा छात्रावास प्रारम्भ हुआ और आदरणीय बालासाहब देशपाण्डे द्वारा अपने कार्य की नींव रखी गई। एक संजोग ऐसा की वह श्री बालासाहब जी का जन्मदिन भी था।

श्री बालासाहब देशपाण्डे जशपुर आये थे शासकीय अधिकारी के रूप में, उन्होंने समाज में कई कल्याणकारी काम किये, विशेषतः शिक्षा के क्षेत्र में एक वर्ष में 108 विद्यालय शुरू किये। ईसाई मिशनरीयों को उनके एकाधिकार के लिये यह एक चुनौती थी। समाज में व्याप्त भय के वातावरण को समाप्त कर स्वाभिमान जगाने के प्रयास किये। यह सब करते समय कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।
तत्कालीन सामाजिक स्थिति के सन्दर्भ में उन्होंने गांधीवादी नेता आदरणीय ठक्कर बापा से विचार विमर्श भी किया। वे अपने कार्य में सम्पूर्ण प्रामाणिकता के साथ कार्य करते थे फिर भी सरकारी कामकाज में स्वार्थी तत्वों से उन्हें सतत असहयोग का अनुभव हो रहा था। कुछ ही समय में महाराष्ट्र के गढचिरोली क्षेत्र में उनका तबादला भी हुआ। उसे रोकने के लिये उन्होंने अपना पक्ष भी रखा परन्तु एक बात पक्की हो गई की सरकारी प्रयासों से सामाजिक परिवर्तन के इच्छित परिणाम नहीं मिल सकते।

जशपुर में वकालत कर उन्होंने कार्य का बीजारोपण किया, जिसे आज हम जनजाति क्षेत्र के विशाल संगठन के रूप में देख सकते हैं। बालासाहब वनवासी कल्याा आश्रम के कार्य को पुत्रवत प्रेम करते थे। वे कहते थे की भगवान ने मुझे चार संतान दी है और कल्याण आश्रम मेरी पाँचवी संतान है। कई वर्षों तक अपनी स्वयं की आय से वे छात्रावास का सारा व्यय करते थे। कार्य को आपने जिस प्रकार से सींचा है वह एक विरल उदाहरण है।

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बालासाहब ने कार्य प्रारम्भ जशपुर से किया और 1978 में जब इसे अखिल भारतीय स्वरूप देने का निर्णय हुआ तो वे स्वयं सम्पूर्ण देश में प्रवास कर कार्य वृद्धि में जुट गए। विशेषतः उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में वहाँ की गंभीर स्थिति को देखते हुए कार्य करना अत्यंत आवश्यक था। धर्मान्तरण की समस्या का समाधान करना और साथ में समाज में देशभक्ति का भाव जागरण करना दोनो प्रकार की चुनौति सामने थी। जिनके मन में देशप्रेम है ऐसे व्यक्तियों का सम्पर्क कर स्थानीय काम को बल मिले इस हेतु विभिन्न संगठनों की रचना की।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के जनजाति समाज को बाकी समाज से दूर करने के षड्यंत्र के रूप में ‘मूलनिवासी संकल्पना’ को स्थापित करने के प्रयास जब चल रहे थे आपने भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री नरसिंह राव का सम्पर्क कर अपने विचार रखे और समस्या के समाधान हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कहते थे कि भारत में रहनेवाले सारे मूलनिवासी है। यहाँ कोई बाहर से आए नहीं है। इसलिए मूलनिवासी संकल्पना विश्व के अन्य देशों में जिस प्रकार देखने को मिलती है वैसे भारत में नहीं है। यहाँ वह अप्रस्तुत है। आपने इस हेतु प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया और परिणामस्वरूप आज अंतर्राष्ट्रीय मंच भारत पर इसी विचारों पर कायाम है।

आज 67 वर्ष पूर्व इस कार्य का एक प्रकल्प था आज 20 हज़ार से अधिक प्रकल्प हैं। कार्य प्रारम्भ के समय सीमित संसाधनों के बल पर कार्य शुरू हुआ और आज समाज सहयोग के कारण विपुल मात्रा में मानव संसाधन से लेकर सभी प्रकार के सहयोग द्वारा कार्य चल रहा है। देश के सभी राज्यों में काम है, 90 प्रतिशत से अधिक जिले कार्यरत हैं। हज़ारों ग्रामीण एवं नगरीय समितियाँ सक्रिय हैं। शिक्षा, आरोग्य, श्रद्धाजागरण, खेलकूद, प्रचार, ग्रामविकास, हितरक्षा जैसे कई आयामों के माध्यम से और कार्यकर्ताओं के सामूहिक प्रयासों से कार्य बढ़ रहा है। यह सत्य होते हुए भी एक वास्तविकता ये भी है कि हमें आज भी बहुत कुछ करना शेष है।

वनवासी कल्याण आश्रम के स्थापना दिन के निमित्त हम संकल्प करें कि वनयोगी बालासाहब देशपाण्डे के दिखाये इस पथ पर जीवन के अंतिम क्षण तक हम कार्यरत रहें। इस ईश्वरीय कार्य में सर्वशक्ति लगाकर अपने जीवन को सार्थक करें।

 

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