मेरे अनुभव

काश हमारे आस्ट्रेलिया में
वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्था होती….

गुवाहाटी नार्थ इस्ट का प्रवेशव्दार है। गुवा का असमिया में अर्थ होता है सुपारी और हाट याने बाजार। यहाँ का कामाख्या देवी का शक्तिपीठ देश के सभी भक्तों के श्रध्दा का स्थान है। इसी गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के बीचों बीच प्रसिध्द उमानंद मंदिर है। वहाँ नांव से जाना पड़ता है। नवग्रह मंदिर भारत के अतीत की पहचान है। गुवाहाटी के पास ही प्राचीन वसिष्ठाश्रम मुनी वसिष्ठ की साधना स्थली है। इस पवित्र नगरी में विगत दो दशकों में भी कुछ पवित्र स्थानों की खोज हुई तो कुछ नये मंदिर निर्माण हुए। गुवाहाटी के पास भगवान शिवलिंग की खोज हुई। उस पवित्र स्थान का नाम रखा गया भीमाशंकर। वही दूसरी ओर गुवाहाटी में तिरुपती बालाजी के मंदिर का सुंदर प्रति मंदिर बनवाया गया। वहीं ऊंचे पहाड़ पर ISCON का कृष्ण मंदिर देखने लायक पवित्र स्थान है।

एक दिन शाम को रिमझिम बारिश हो रही थी। क्या करें ऐसा सोच रहा था तो याद आया बहुत दिनों में ISCON मंदिर में नही गया इस लिए मंदिर गया। प्रशस्त प्रशांत मंदिर के प्रांगण में पहुंचते ही मन प्रसन्न हो गया। मंदिर के अंदर प्रवेश किया तो प्रवचन चल रहा था। सुंदर मूर्ति का दर्शन कर प्रवचन सुनने बैठ गया। एक विदेशी संन्यासी भागवत् पर प्रवचन दे रहा था। थोडे ही देर में प्रवचन समाप्त हो गया। थोड़े ही समय में प्रवचन सुननेवाले श्रोतागण चले गए।

मैं धीरे से उत्सुकता वश संन्यासी को मिलने गया। मेरा नाम बताया। उनका परिचय पूछा तो पता चला की वह आस्ट्रेलिया से पधारे है। उनका भारत में भ्रमण चल रहा है। फिर मेरे बारे में पूछा तो मैंने बताया मैं वनवासी कल्याण आश्रम का काम करता हूँ। उन्हों ने सहजता से पूछा यह वनवासी कल्याण आश्रम क्या है ?

वनवासी कल्याण आश्रम भारत में 11 करोड़ वनवासी समाज के सर्वांगिण उन्नति के लिए कार्य करने वाला संगठन है। संगठन शिक्षा, छात्रावास, आरोग्य सेवा जैसे सेवाकार्य करता है। लेकिन इस के साथ साथ प्रमुख कार्य के रुप में आश्रम जनजाति समाज के परंपरा, संस्कृति, इतिहास, भाषा एवं पहचान का संरक्षण एवं संवर्धन करने का कार्य करता है। परिणाम स्वरुप जो जनजातियाँ विदेशी धर्म के धर्मांतरण का शिकार हो रहे थे उस से संगठित होकर अपने धर्म संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम हो रहें है।

यह सारा सुनने के बाद विदेशी संन्यासी थोडा समय शांत रहे और बोले काश हमारे आस्ट्रेलिया में ऐसी संस्था होती, तो हमारे देश के जनजाति लोगों के धर्म संस्कृति की रक्षा होती। आज वह समाज अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। मैंने कौतुहल से पूछा क्या वहाँ जनजाति समाज सुरक्षित नहीं है ?

संन्यासी बोला औपनिवेशिक तत्वों ने एवं ईसाई मिशनरियों ने वहाँ के मूल निवासीयों को धर्मांतरित किया जो नहीं हुए उनको मारा, उनके उपर अत्याचार किए। आज उनकी स्थिति सर्कस के शेर जैसी है। उनकी जनसंख्या कम होती जा रही है। उनको एक सीमित क्षेत्र में ही रहना है। आज भी उनको कई मूलभूत अधिकार नहीं है।

हमारे देश में आपकी संस्था जैसी संस्था होती तो वह मूल निवासी लोगों की परंपरा बचती। इसलिए मैंने कहाँ काश हमारे आस्ट्रेलिया में वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्था होती तो हमारे आदिवासी समाज के लोगों का भी उत्थान होता।

– अतुल जोग

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