जनजाति हितरक्षा

जनजातीयों के कानुनी अधिकारों पर कार्यशाला सम्पन्न

राज कुमार भारद्वाज
9459401446

हिमगिरि कल्याण आश्रम एवम् अधिवक्ता परिषद् हि0 प्र0 के तत्वाधान में शिमला में दिनांक 1 दिसंबर 2019 को जनजातियों के सतत् विकास हेतु वर्तमान समय में बने कानुन, जैसे पंचायत विस्तार कानुन 1996, वन अधिकार कानुन 2006 के क्रियान्वयन के सम्बद्ध में एक दिवसीय विचार गोष्ठी सम्पन्न हुई। इस विचार गोष्ठी में प्रमुख रुप से दो विन्दुओं पर विचार विमर्श हुआ। हिमाचल प्रदेश के अनुसुचित क्षेत्र में पंचायत विस्तार अघिनियम (PESA) 1996 एवम् वन अधिकार कानुन 2006 के क्रियान्वयन पर सभी प्रतिनिधियों ने चर्चा की। पेसाकानुन 1996 के तहत हिमाचल प्रदेश ने 2011 में नियम बनाए किन्तु कानुन के अनुसार नहीं बने। पेसाकानुन में परम्परागत गाँव के अनुसार ग्राम सभा अपेक्षित है, किन्तु हि0 प्र0 के नियमों में पंचायत के ग्राम सभा को ही ग्राम सभा माना है। वन अधिकार कानुन 2006 के सम्बद्ध में किनौर जिले के प्रतिनिधियों ने वन अधिकार कानून 2006 के संबंध में विविध बिन्दू सामने लाए। इस कानुन एवं क्रियान्वयन के संबध में प्रशिक्षण तो हुए किन्तु उस का परिणाम प्रत्यक्ष सफल क्रियान्वयन में नहीं दिख रहा। अनुसुचितजनजाती के होते हुए भी तीन पीढीयों का सबुत मांगा जा रहा है। पुराने सेटलमैंट को बताते हुए वन अधिकार कानुन की आवश्यकता नकार रहें हैं। हिमाचल प्रदेश में परम्परागत वननिवासी सभी जिलों में है, किन्तु वहाँ पर इस कानुन को लागू नहीं किया जा रहा। एक ही व्यक्ति को कभी जनजाती तो कभी वननिवासी कह रहें है। सामुदायिक वन अधिकारों को केवल धारा 3.(2) को ही माना जा रहा है। किन्तु धारा 3.(1) में दिए हुए सामुदायिक वन संसाधनों के अधिकार विशेषतः 3.(1)(झ) कहीं भी दिए नहीं है। भेड. बकरी जैसे पशु आधारित जीवन यापन करने वाले लोगों को इस सामुदायिक वन संसाधनो के अधिकारो की आवश्यकता है। शासकीय रिपोर्ट भी समय-समय पर अलग-अलग दिखा रहें हैं। जिला स्तरीय वन अधिकार समिति के तीनों अशासकीय सदस्यों को निर्णय प्रक्रिया से दूर रखा है। जिस समाज के लिए यह कानुन बना है,उसकी जानकारी ही लोगों को नहीं है।

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दुसरे सत्र में हिमाचल प्रदेश में बन रहे जल विद्युत प्रकल्प एवम् बांध से प्रभावित क्षेत्र की चर्चा हुई। प्रतिनिधियों ने कहा कि हम विकास विरोधी नहीं है किन्तु राष्द्र हित की परिभाषा क्या है? आज तक बने विकास परियोजनाओं का अंकेक्षण होना चाहिए। कुछ प्रकल्प बंद पडे हैं। जिन लोगों का आज तक विस्थापन हुआ, उनके पुर्नवास की समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं। व्यास, सतलुज, रावीतीनो नदियों को अपने मार्ग से अलग दिशा में मोड दिया है। रावी नदी 36 कि0 मी0 टनल में है, इस कारण 60 कि0 मी0 नदी का पात्र सुखा है। एक दृष्टि से नदी की मौतही हुई है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि 25℅ पानी नदी के पात्र में जाना ही चाहिए। भरमौर की सडक पर 12 महीने भुस्खलन होता है। बिलासपुर जिले मेफोरलाइन रोड के कारण मिट्टी का मलवा नदी नालों मे जा रहा है। 50 मेद्रिक टन मछलियों के उत्पादन में गिरावट आई है। नालों से मिट्टी 45 कि0 मी0 बहते हुएरिजर्वायर में भर चुकी है।

इस सत्र में डॉ0 व्ही के बहुगुणा (नेवृत डी जी फोरेस्ट) ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण, जैव विविधता जैसे परिस्थितिकीमहत्वपुर्ण है। केवल सीमावर्ती सुरक्षा से नहीं, देश की सुरक्षा हेतुसमाजभीअशांतनाहो। विकास परियोजनाओं के बजटसे 5℅राशी सामाजिक एवम् परिस्थितिकि के अध्ययन हेतु लगाना चाहिए। नदी की क्षमता बढाने के लिए सभी छोटी मोटी सहायक नदियों का सर्वधन होना चाहिए। जल विद्युत प्रकल्पो के साथ-साथ सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा जैसे अपारम्पारिक ऊर्जाओं को ढुंढना चाहिए। प्रतिनिधियों ने सुझाव के रुप में अपने-अपने विचार रखे। वन अधिकार कानुन के क्रियानवयन हेतु राज्य एवं जिला स्तर पर विशेष कक्ष बनाना चाहिए। ग्राम सभा से अनुमति हेतु जन सुनवाई ठीक से हो। पर्यावरणीय पर्यटन, साहसिक पर्यटन इन बातों पर ध्यान देना चाहिए। विकास प्रकल्पों को करते समय अत्याधुनिक संसाधनों का उपयोग हो ।

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श्री कुलभुषणउपमन्यु जी ने कहा कि, जनजाति समाज पूर्व से पशुपालन एवमवनोपज पर अवलंबित था। सारे संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार था। अंग्रेजो ने जान लिया की इससे समाज संघटित विरोध कर रहा है, तो उन्होंने सामुदायिक अधिकारों को नष्ट किया। वन अधिकार कानून, समुदाय को जागृत कर रहा है। और इसे शासन-प्रशासन नही चाहता है। कानून को वेअच्छी तरह से जानते है, किन्तु वे गलत दिशा में जा रहे है। सभी वन संसाधनों का प्रबंधन गाव वासी करेंगे, तो हम क्या करेंगे? इस गलत दिशा में सोच रहे है। इसलिये एक तो वन विभाग को यह समझाना होगा की उसकी भूमिका अब बदल चुकी है। वन विभाग एक तांत्रिक तज्ञ सलाहकार के रूप मे काम करना है। दुसरी बात है की शासन को डर है की हमारे विकास प्रकल्पों का क्या होगा? इसलिये वोग्रामसभा को सक्षम बनाने के पक्ष मेनही है। इस लिये सरकार को भी मनाना होगा। तीसरी बात है न्याय की।न्यायाधीशभीशासन-प्रशासन के बातों से प्रभावित है। जनजातियों के ऐतिहासिक अन्याय का पक्ष सरकारने उनके सामने रखा ही नही। वो प्रभावी रूप मे रखने की आवश्यकता है। तभी यह वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन सही दिशा मे होगा।

उन्होने आगे यह कहा की, वर्तमान विकास एवम विस्थापन को लेकर, हम विकास को समग्रता से देखना चाहीये। नदी को हम समग्रता मे देखना होगा। उस पर अवलंबित समाज, जैवविविधता, पर्यावरण, पर्यटन आदि सभी बातों को देखना होगा। विविध जलविद्युतपरियोजनाए चलते जो पर्यावरण एवमजनजीवन पर प्रभाव हो रहा है, यह केवल हिमाचल कि बात नही है। यह आवाज हम देश के लिए उठा रहा है। यह हमे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष मे देखना होगा। यह केवल आज के अपने वर्तमान पिढी के लिये नही, तो आगामी अनेक पीढियों के के लिये समानता का विचार करना चाहिये। हिमालय क्षेत्र का विकास अर्थात समग्र विकास निती पर प्लॅनिंग कमिशन ने स्पेशलवर्किंग ग्रुप बनाया था, जो करणीय और ना करणीय बातों को रेखांकित किया था। आज डॉक्टर सारस्वत जी के नेतृत्व में एक हिमालय नीती बन रही है। उन्हें मिलकर विचार विमर्श करना होगा। विकास मे मनुष्य और प्रकृती की भी चींता करनी होगी। माननीय अटल जी के समय एक हिमालय समग्र विकास प्राधिकरणष् बनाया था। इसी धर्ती पर विचार करना होगा।

पूर्व न्यायाधीश एडबीएल सोनी जी ने कहा की, कानून से अधिकार नही मिलते। बच्चा जब जन्म लेता है तब चराचर सृष्टी पर अपना अधिकार लेकर ही जन्म लेता है। संसद अधिकार नही देता। समय समय पर उसके अधिकारों को मान्यता देता है। ब्रिटिशोंने समाज का बहुत गहरा अध्ययन किया और वनोश् पर अपने अधिकार के लिए 1878 मे कानून बनाये, भारतीय वन कानून 1927ने समाज को केवल कुछ अनुमति दे दी, और राज्यों को वनों के अधिकार दे दिये, जिससे वे आरक्षित वन घोषित कर सकते है और केवल उसका मुआवजा दे। जो वनों के राजा थे, वे भिकारी बन गये। स्वतंत्रता के बाद भी वही भारतीय वन कानून 1927 चल रहा है। इसको चलते झारखंड, छत्तीसगडमे संघर्ष चलता रहा। जिसके परिणाम स्वरूप संसद ने वन अधिकार कानून 2006 पारित किया। वह भी प्रामाणिकता से लागू नही किया है। पर्यावरणीयएवम भू राजस्व के कानूनों को उस परिप्रेक्ष नही बदला गया। वन अधिकार कानून 2006 की चिंतानही की गई। न्यायालय में भी आज तक सही ढंग से बहस नही की गयी। आज भी सेब के पेड काटे जा रहे है जीवन यापन का संघर्ष चल रहा है। वन, पर्यावरण विभाग यह लागू नही कर रहा है। यह वन अधिकार कानून 2006 पूर्व के कानूनों को प्रभावित करता है, यह बात स्वीकार नही कर रहे। राज्य की इच्छाशक्ती दिखाई नही देती। जिल्हा स्तरीय एवं उपविभाग स्तरीय समिती, कानून के अनुसार काम नही कर रही। इसे लागू करने हेतू प्रयास नही हो रहा। इन सभी बातों को हमे ठीक से समझकर आगे की रणनीती बनानी होगी।

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डॉक्टर चंद्र मोहन परशिरा (जनजाती शोध संस्थान- निदेशक) जी ने कहा कि, कुछ त्रुटियां है और अनदेखापन भी है। जागरण एवम प्रशिक्षण के बाद अनुवर्तन तथा सतत पूछताछ की आवश्यकता है। सभी अधिकारी-कर्मचारीयों को बहुत जानकारी है। आवश्यकता होने पर कोर्ट मे जाना ही चाहिये। हिमाचल को एक ईकाइ मानकर चलना चाहिए। विद्युत विकास योजना से विनाश एवम विकास असत्य और सत्य यह साथ ही चलते है। विकास की अवधारणा स्पष्ट होनी चाहिये। पांगी संगम, चंद्रभागा संगम यह प्राचीन धरोहर है। द्रौपदी का दहनस्थान तीर्थ ही रहने दो। जनजाति समाज यह भारतीय समाज का मूल है। राष्ट्र की, देश की जो मूल संस्कृती आज तक बदली नही, वो ही जनजाती समाज है। वे ही मुल है, वो बदले नही। लाहोल-स्पिति यह देश, संस्कृती का मूल है। हम यह ध्यान में रखकर एक साझी नीति बनाकर चलना चाहिये।

समापन के कार्यक्रम मे हिमाचल प्रदेश के वन, खेल एवं पर्यटन मंत्री श्री गोविंदजी ठाकूर उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि आज यहापर बहुत महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई है। मै अगर पूर्ण समय उपस्थित रह पाता, तो मुझे भी जमिनी स्तर की जानकारी प्राप्त होती। मै आश्वस्त करता हू की, सरकार वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन हेतू एक समग्रतासे मीटिंग करेंगे। प्रमुख बिंदूओं पर खुलकर बात करेंगे। हिमालय विकास पर एक नीती बनाना चाहिये। विकास के, विरोध के लिए विरोध नही हो। हम खुलकर बात करेंगे, ठीक रास्ता निकालना चाहिये। और हम हिमगिरी कल्याण आश्रम और अधिवक्ता परिषद से मिलकर सही दिशा मे जरुर चलेंगे।

इस विचार गोष्ठी को सभी ने सहारा और आगामी कुछ ही माह में सतत फॉलोअप से हम अंतिम लक्ष्य तक जरूर पहुचेंगे।
इस विचार गोष्ठी में श्री गोबिन्द ठाकुर – वन, खेल एवम् परिवहन मन्त्री हि0 प्र0, डॉ0 व्ही के बहुगुणा – निवृत डी जी फोरेस्ट, श्रीधर राममुर्ति- एनवेरोनिक्स, अधि0 बीएल सोनी ( निवृत जिला एवम् सत्र न्यायाधीश), हि0 प्र0 वि0 वि0 से डॉ0 चन्द्र मोहन परशीरा ( निदेशक जनजाती शोध संस्थान ), श्री हरवंश नेगी – कमिशनर आयकर विभाग, चम्बा से डॉ0 मोहिन्द्र सलारीया, रोशन लाल ( आरएफ ओ) सेव्ह लाहौल स्पिति से प्रेमचन्द जी ( निवृत डी एस पी ) सेन्टर फोर सस्टेनेबल डेवलपमैंट के जितेन्द्र वर्मा, प्रेमचन्द, दिनेश जी, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के शाम सिंह चैहान, लाहौल के रिगजिनहायरपा, हिमालय निति अभियान से संदिप मिन्हास, विशाल जी, संस्थापक श्री कुलभुशन उपमन्यु जी, भारतीय किसान संघ के संगठन मन्त्री श्री हरिराम, महामन्त्री सुरेश ठाकुर, उमेश सुद, हिमगिरी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष श्री अशोक ठाकुर, उपाध्यक्ष श्री धर्मपाल महाजन, निहाल चन्द ठाकुर, संघटन मन्त्री श्री भगवान जी, हितरक्षा प्रमुख राजकुमार भारद्वाज और युवराज बौध, अधिवक्ता परिशद के राष्द्रीय कार्यकारिणी सद्स्य श्री राजेश कुमार ( ए एस जी आई), कार्यकारी अध्यक्ष अविनाश शर्मा, महामन्त्री अमित सिंह चन्देल, लोकेन्द्र पाल ठाकुर, अविनाश जरियाल, सुनितासुद, सी डी नेगी, किशन जी, हिमलोक जागृति मन्चकिनौर सें विनय नेगी, नानक सिंह चांकुम, भगत सिंह किन्नर, उच्चतम न्यायलय से अधि0 सार्थक जी, हिमाचल वन अधिकार मन्च के प्रकाश भन्डारी, वन अधिकार संघर्ष समिति के सीताराम जी, जियालाल नेगी, मातृ वन्दना के श्री अरुण देव, पत्रकार बन्धु एवम् समाज के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

(लेखक हिमगिरी कल्याण आश्रम के प्रांत हितरक्षा प्रमुख है।)

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