कौन आदि है,
सब अनादि है,
हम सब भारतवासी है,
पुरखें सबके खून एक है
नगर ग्राम वनवासी है।
हम सब भारतवासी है ।। धृ.।।
राजमहल का मोह छोड़कर बरसों दुर्गम राह चलें
फलों की सेजों के बदले, काटों पर ही कदम पड़े
केवट ने प्रभू पाव पखारे निषाद राजा फूट पड़े
चित्रकूट क्या, पंचवटी सब, गिरी वन सर नद झूम पडे
शबरी के बेरों को खाने, राम बने वनवासी है
पुरखे सबके खून एक है. ।। 1।।
हाथी के हौदेपर चढ़कर दुर्गा का अवतार लड़ी
दो हाथों में तलवारे ले अरि मुण्डों पर टूट पड़ी
नारायण के दल विक्रम को अजर अमर रणशौर्य घड़ी
बलवीरों की खड़ग धार भी, रिपुदल पर सब बरस पड़ी
गढ़ मंडला की रानी दुर्गा रणचंडी वनवासी है
पुरखे सबके खून एक है….. ।। 2।।
परचक्रों की आँधी आई क्रूर पाशवी विपदा आई
वीर शिवाजी के इंगित पर मचल उठी सारी तरूणाई
सहयाद्री ललकार उठा और सागर में नव ज्वार उठा
धरती का अभिमान जगा तब, पर पशुता का पाश मिटा
शिव स्वराज्य पर हुए समर्पित, भारत के वनवासी है
पुरखे सबके खून एक ।। 3 ।।
उपक्षितों की सेवा करने, गिरी जंगल की ओर बढ़े
स्वजनों की अनुभूति जगाने समरसता के भाव उठे
न्हीं प्रलोभन मिटा सकेंगे राष्ट्रभक्ति साकार बने
देश धर्म पर अविचल निष्ठा झंझा में भी अडिग रहे
भाषा कितनी भूषा न्यारी फिर भी भारतवासी है
पुरखे सबके खून एक ।। 4 ।।