विविधता में एकता यह अपने भारत की प्रमुख विशेषता है। विभिन्न जाति, पंथ – संप्रदाय, भाषा – वेशभूषा होते हुए भी एक आंतरिक सूत्र ने भारत जैसे विशाल देश को एकत्रित बांधने का काम किया है। देश की इसी सुंदरता को सुशोभित किया है अपने जनजाति समाज ने…!
वर्तमान में भारत में 12 करोड़ से अधिक जनजाति समाज निवास करता है। देश के सुदूर वनों – पर्वतों में रहने वाला जनजाति समाज अपनी भारतीय परंपरा और संस्कृति का सच्चा संरक्षक है। भारत की संस्कृति का अभिन्न घटक होते हुए भी दुर्भाग्य से जनजाति समाज घोर उपेक्षा का शिकार हुआ। इसी उपेक्षा को समाप्त करते हुए जनजाति समाज तक विकास की किरणे पहुंचा कर ‘ तू – मैं एक रक्त ‘ इस भाव को दृढ़ करने के लिए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम संपूर्ण देश में कार्यरत है।
वर्तमान में भारत में 12 करोड़ से अधिक जनजाति समाज निवास करता है। देश के सुदूर वनों – पर्वतों में रहने वाला जनजाति समाज अपनी भारतीय परंपरा और संस्कृति का सच्चा संरक्षक है। भारत की संस्कृति का अभिन्न घटक होते हुए भी दुर्भाग्य से जनजाति समाज घोर उपेक्षा का शिकार हुआ। इसी उपेक्षा को समाप्त करते हुए जनजाति समाज तक विकास की किरणे पहुंचा कर ‘ तू – मैं एक रक्त ‘ इस भाव को दृढ़ करने के लिए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम संपूर्ण देश में कार्यरत है।
26 दिसंबर 1952 को छत्तीसगढ़ के जशपुर नगर में श्री रमाकांत केशव तथा श्री बाला साहब देशपांडे जी द्वारा कल्याण आश्रम की नींव रखी गई। आज इस कार्य का प्रचंड वटवृक्ष में रूपांतर हुआ है। जनजाति समाज को स्वावलंबी एवं सुसंगठित बनाने के लिए कल्याण आश्रम का कार्य निरंतर चल रहा है। देश के लगभग सभी प्रांतों में कल्याण आश्रम के हजारों संवेदनशील एवं समर्पित कार्यकर्ता अपने जनजाति बंधुओं के विकास के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। जनजाति समाज के विकास के लिए 21 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। देश को अखंड और वैभव संपन्न बनाने का यह राष्ट्रीय कार्य है।
नगरवासी, ग्रामवासी, वनवासी
हम सब भारतवासी ।।
यह हमारा प्रमुख सूत्र है।