वैभवशाली भारत के हम स्वप्न देखती महिलाएँ
वन अँचल के घर-घर पहुँचे, अनथक चलती महिलाएँ ।। धृ.।।
शक्तिस्वरूपा, स्नेहसुधा तु, सृजनशील ममतामूर्ति
संस्कारों को करे प्रवाहित जन जन के आधार बनी
अहर्निषम्, कृतिशील रही है, भारतीय ये महिलाएँ ।। 1।।
अनथक चलती महिलाएँ
संकट क्षण में अग्रेसर तु, रणक्षेत्रों में साथ चली
शस्त्रधार कर सेना लेकर, संस्कृति रक्षा कवच बनी,
असुरमर्दिनी दुर्गारूपी आर्यावर्त की महिलाएँ ।। 2।।
अनथक चलती महिलाएँ
पश्चिम की आँधी से अपनी, भरत भूमी है संकट में
समाज सारा प्रभाव में है, राष्ट्र चिती भी संकट में
भविष्य उज्वल तेरे कारण, संकल्पित ये महिलाएँ ।। 3।।
अनथक चलती महिलाएँ