हे पुरूषार्थि ! कर्मयोगी हे !
प्रेरक तुम सबके, प्रेरक तुम सबके ।। धृ.।।
इस भूमि के संस्कारों की
सुगंध फैली गिरीकंदर में,
आप चलें चैतन्य चलाजो,
पथदर्शक तुम थे। ।। 1।।
प्रेरक तुम सबके…….
भय से व्याप्त वनंाचल जब था,
कहीं नहीं देखी निर्भयता,
संकट की बेला में तुम तो
निर्णायक होते ।। 2।।
प्रेरक तुम सबके………….
सच कहने का साहस देखा,
मन में स्नेह रूप में सरिता,
भावजागरण करने निकले,
वनयोगी तुम थे ।। 3।।
प्रेरक तुम सबके…………
कार्य रूप में अंजली देकर
जन्मशती का आयोजन कर
धन्य हुए हम सबके जीवन,
इस पथ पर चलते।। 4।।
प्रेरक तुम सबके……….