ऐक्य बोध हो , ऐक्य बोध हो !

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ऐक्य बोध हो , ऐक्य बोध हो !
हम-तुम यह भेद मिटे,
सारे अलगाव हटे,ऐक्य बोध हो(2)
भ्रातृभाव आधारित समरसता हो
बन्धुभाव आधारित समरसता हो
ऐक्य बोध हो(2)

एक ब्रह्म सब में है एक चेतना
छूआछूत की फिर क्यों भ्रान्त धारणा
शिव, राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर भी,
नानक, बिरसा, कबीर सबके हैं सभी
जातिपंथ भेद मिटे, ऊँच-नीच भाव हटे धर्म बोध हो(2)
आत्मीयता आधारित समरसता हो,
ऐक्य बोध हो (2) ||1||

रामेश्वर, जगन्नाथ, बद्री, द्वारिका,
आस्था के केन्द्र यही सब की भावना
हम नहीं है भिन्न अपितु विविध हैं
पंथ अलग अलग किन्तु मंत्र एक हैं
सब समाज साथ रहे , सेवा सहकार रहे संघ भाव हो (2)
संगठना आधारित समरसता हो,…
ऐक्य बोध हो… ||2||

वनवासी, ग्रामवासी, नगर निवासी
हम सब है हिन्दू, जो भारतवासी
एक राष्ट्र संस्कृति है एक हमारी
भारत माँ ही माता एक हमारी
भाषा के वाद मिटे प्रान्त वर्गभेद हटे ,राष्ट्र बोध हो (2)
राष्ट्रीयता आधारित समरसता हो,
ऐक्य बोध हो… ||3||

 

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