दूर दूर गॉंवों में जाएं वनबन्धु को मिलाने

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दूर दूर गाँवों में जाएं वनबन्धु को मिलने
स्वस्थ निरामय जीवन सबका भाव रहा है मन में ।। धृ.।।

घर घर पहुंचे सबको पूछे पिड़ा दुःख है कोई
स्नेहपूर्ण व्यवहार हमारा ऊंच नीच ना कोई
अपनेपन का भाव जगाने गिरी कंदर वन चलतें।। 1।।

उपचारों से स्वस्थ शरीर हो ये हमने देखा है
औषधी देकर धर्म बदलता ये कैसे होता है ?
वनवासी जीवन को समझे समरस हो हम सबसे।। 2।।

मैं करता हूँ मैं करता हूँ उचित भाव ये है क्या?
मिलकर सब हम कार्य करेंगे कर्मरूप में पूजा
समाजरूपी ईश्वर के हम साघक बन कर चलते।। 3।।

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