Foundation Stone Detail

श्री बालासाहब देशपांडे

श्री रमाकांत केशव उर्फ़ बालासाहब देशपांडे का जन्म 26 दिसंबर 1913 को अमरावती नगरी में हुआ । उनके पिताजी का नाम केशवराव देशपांडे एवं माताजी का नाम लक्ष्मीबाई था । सन 1935 में नागपुर के हिस्लोप कॉलेज से बी ए , 1937 में एल एल बी और 1939 में अर्थशास्त्र में एम् ए की पढाई पूरी की । 1942 के गाँधी जी के आवाहन पर ‘छोडो भारत’ आन्दोलन में रामटेक में सक्रीय भूमिका निभाई. परिणामत: अंग्रेज सरकार ने बालासाहब को छ: महीनों के लिए कारावास में भेजा । कारावास से निकलने के बाद उनका शुभ विवाह हुआ उनके पतनि का नाम प्रभावती था । 1945 में नागपुर में वकालत आरम्भ की ।

मई 1948 में ‘पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग’ (Backward Class Welfare Department) के अंतर्गत क्षेत्रीय संयोजक के पद पर जशपुर में नियुक्त किए गए । बालासाहब जी ने अति विपरीत परिस्थितियों में एक वर्ष के अन्दर 100 प्राथमिक और 8 माध्यमिक शालाओं की स्थापना की । जशपुर क्षेत्र के उराँव वनवासी ग्रामों में भ्रमण करते हुए परिस्थिति का अध्ययन किया । मई 1952 में शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर जशपुर में ही वकालत आरम्भ की । 26 दिसंबर 1952 को वनवासियों की सेवा एवं उत्थान के लिए बालक छात्रावास का शुभारम्भ किया । सन 1956 में इस कार्य हेतु ‘कल्याण आश्रम’ नाम से संस्था का पंजीयन किया गया और श्री बालासाहब देशपांडे जी इसके अध्यक्ष बने । धीरे धीरे कार्य बढ़ता गया और 1978 में इसको पूरे भारत में फ़ैलाने के लिए ‘अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम’ की स्थापना एवं पंजीयन किया गया । उसके संस्थापक अध्यक्ष स्वाभाविक रूप से श्री बालासाहब देशपांडे जी बने । इस कार्य को देशभर फ़ैलाने के लिए उन्होंने सभी राज्यों में भ्रमण किया । 21 अप्रैल 1995 को उनका जशपुर में ही देहांत हो गया ।

श्री मोरुभाऊ केतकर

श्री मोरुभाऊ केतकर का जन्म गणेश चतुर्थी के दिन 1914 में हुआ इस कारण माता-पिता ने नाम मोरेश्वर रखा । विद्यालयीन पढाई करते हुए मैट्रिक की परीक्षा पास की । परिस्थितिवश अपने जीविकोपार्जन हेतु खासगी कंपनी में कुछ दिन नौकरी की । छात्र जीवन में ही संघ के संपर्क में आने के कारण देश और समाज के लिए कार्य करने की प्रेरणा जगी परिणामत: नौकरी छोड़कर 1942 में संघ के प्रचारक के रूप में कार्य प्रारंभ किया ।
अक्तूबर 1952 में श्री बालासाहब देशपांडे जी के सहयोगी के नाते जशपुर आ गए । उसी वर्ष 26 दिसंबर को छात्रावास का शुभारम्भ हुआ । श्री मोरुभाऊ ने प्रारंभ से इस कार्य को अपने हाथ में लिया । विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में और अभावों में कुशलता पूर्वक कार्य का सञ्चालन किया । छात्रों को पढाई के साथ साथ सामाजिक, नैतिक और राष्ट्रीय शिक्षा देने हेतु विभिन्न उपक्रम और कार्यक्रम उन्होंने आयोजित किए । बाद में समय की आवश्यकता को ध्यान में लेकर विद्यालय आरम्भ किया गया । इसका भी कार्य श्री मोरुभाऊ जी देखते थे, स्वाभाविक रूप से उन्हें सभी लोग ‘गुरूजी’ नाम से संबोधित करते थे । सन 1977 में ‘अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम’ का पंजीयन कराया गया । श्री मोरुभाऊ केतकर को संस्था का उपाध्यक्ष बनाया गया ।
मोरुभाऊ ने इन दायित्वों को 41 वर्ष तक जीवन के अंत तक निभाया. 9 जुलाई 1993 को उन्होंने ब्रह्मलोक को प्रयाण किया ।

श्री मिश्रीलाल तिवारी

श्री मिश्रीलाल जी का जन्म मध्य प्रदेश के शाजापुर के मोहल्ला काछीबाड़ा में फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के दिन सन 1916 को हुआ | उनके पिताश्री का नाम श्री कुंदनप्रसाद तिवारी एवं माताजी का नाम श्रीमती रुक्मिणी बाई था | श्री मिश्रीलाल जी की प्राथमिक शिक्षा शाजापुर के शासकीय मिडिल स्कूल में हुई थी | आगे की पढाई उज्जैन के माधव इंटर कॉलेज में हुई | सन 1932 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात शासकीय शिक्षा विभाग में उज्जैन में ही प्रधान लिपिक (हेड क्लर्क) की नौकरी प्राप्त हो गई |

विद्यार्थी जीवन में ही संघ के संपर्क में आने के कारण समाज का कार्य करने की इच्छा थी | सन 1946 में

उत्तम प्रतिष्टा परक शासकीय नौकरी छोड़कर संघ प्रचारक बने | संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करने के बाद सन १९६८ में मध्य प्रान्त में कल्याण आश्रम के कार्य को प्रारंभ करने की योजना बनी और इसका दायित्व मिश्रीलाल जी को दिया गया | उन्होंने प्रान्त में छात्रावास एवं अन्य सेवा प्रकल्पों का प्रारंभ किया | उनकी व्यवस्था प्रियतापूर्ण कार्यशैली की छवी उनके व्यक्तित्व की पहचान थी | बाद में सन 1978 उनको वनवासी कल्याण आश्रम का महामंत्री पद का दायित्व दे दिया गया | इस कार्य को उन्होंने बखुबी निभाया | इसके पश्चात 1987 में उनको अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का उपाध्यक्ष बनाया गया | बाद में शारीरिक अस्वस्थता के कारण दायित्वमुक्त हो गए | 10 जुलाई 2001 को उन्होंने इहलोक की यात्रा पूरी की |

श्री भीमसेन चोपड़ा

श्री भीमसेन चोपड़ा का जन्म लाहौर के निकट सरगोधा में 1928 में हुआ था । उनके पिताश्री की असमय मृत्यु होने के कारण उनके बड़े भाई को सेना के इंजीनियरिंग सेवा में नौकरी मिल गई । 1946 में उनका स्थानांतरण जबलपुर में हुआ । पूरा परिवार वहां आ गया, वहां भीमसेनजी को केन्द्रीय आयुध भण्डार (CDO) में नौकरी मिल गई । संघ के सम्पर्क के कारण प्रचारक निकालने की इच्छा बलवत्तर होने के कारण नौकरी को त्याग दिया ।
सन 1953 में जशपुर में कल्याण आश्रम के कार्य हेतु पधारे एवं गाँव गाँव में घूम घूम कर कार्य करने लगे । उस समय कार्य चलाने हेतु आर्थिक सहयोग की आवश्यकता थी अतः श्री भीमसेन चोपड़ा जी धनसंग्रह के कार्य में लगे । इस कार्य को सक्रीय रूप से किया और 1963 में आध्यात्मिकता की इच्छा के कारण साधना हेतु गोरखपुर चले गए । फिर भी कल्याण आश्रम के ऊपर स्नेह अंत तक बना रहा और जब जब संगठ को उनके मार्गदर्शन की आवश्यकता थी उन्होंने वह पूरी की । 24जनवरी 2003 को श्री भीमसेन चोपड़ा जी अनन्त ब्रह्मतत्व में विलीन हो गए ।

श्री कृष्णराव सप्रे

श्री कृष्णराव सप्रे का जन्म 1930 में हुआ । अपनी पढाई पूरी करने के बाद संघ के संस्कारो के परिणाम स्वरुप १९५२ में संघ के प्रचारक के रूप में कार्य प्रारंभ किया और 1954 में कृष्णराव भी जशपुर में बालासाहब जी को सहयोग करने पहुँचे ।
मिशनरियों की वनवासी क्षेत्रों में चल रही गतिविधियों के अध्ययन हेतु राज्य सरकार ने निवृत्त न्यायाधीश श्री भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में 14 अप्रैल 1954 को एक जाँच आयोग गठित करने की घोषणा की, जिसका नाम था ‘क्रिश्चियन मिशनरी एक्टिविटी इन्क्वायरी कमीशन’ । इस आयोग के सामने अनेको ऐसे भयानक तथ्य सामने लाए जिसके कारण इसकी रिपोर्ट देश में प्रसिद्ध हुई । श्री बालासाहब जी को इस तथ्य जुटाने में श्री कृष्णराव सप्रे जी का सहयोग महत्त्व पूर्ण रहा ।
श्री सप्रे जी ने कल्याण आश्रम के कार्य को उत्तर पूर्वांचल में फ़ैलाने के लिए बहुत प्रवास किया एवं विभिन्न जनजाति प्रमुखों से मिले और उनसे संवाद किया । उनके प्रयासों से ‘भारतीय जनजाति सांस्कृतिक मंच’ (Indian Tribal Cultural Forum) का गठन किया गया । उन्होंने जनजाति समाज के इतिहास एवं भाषाओँ पर भी काफी अध्ययन किया । 27 जनवरी 1999 को उनकी आत्मा परमतत्व में विलीन हो गया ।

श्री रामभाऊ गोडबोले

श्री रामभाऊ जी का जन्म 1920 में पुणे में हुआ था | उन्होंने संस्कृत विषय में एम् ए कीया | श्री रामभाऊ गोडबोले सन 1977 में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के प्रथम राष्ट्रीय संगठन मंत्री बने | उन्होंने देशभर घुमकर जनजाति समाज के लोगों को मिलते हुए कल्याण आश्रम के साथ जोड़ा | 1981 में आप के नेतृत्व में दिल्ली में प्रथम राष्ट्रीय कार्यकर्ता सम्मेलन श्री रामभाऊ के नेतृत्व में संपन्न हुआ | उसी प्रकार 1985 में भिलाई में अखिल भारतीय महिला सम्मलेन का आयोजन करते हुए महिलाओं को कल्याण आश्रम के कार्य के साथ जोड़ा | 1987 में मुंबई में प्रथम वनवासी खेल – कूद प्रतियोगिता का आयोजन करते हुए जनजाति युवाओं के खेल प्रतिभा को प्रोत्साहित किया | केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली के मोटा रांधा में ‘सूर्य निकेतन’ नाम से प्रशिक्षण केंद्र की महत्वकांक्षी योजना आपने क्रियान्वित की | इस प्रकार वनवासी कल्याण आश्रम के कार्य को विभिन्न आयामों से पल्लवित करत हुए देश भर युवाओं को सामाजिक कार्य की प्रेरणा देते हुए कार्य को अखिल भारतीय स्वरुप दिया | श्री रामभाऊ जी ने वृद्धापकाल के कारण सन 1988 में कार्य से निवृत्ति लिया | सन 2003 में पुणे में उनका देहावसान हुआ |

पूज्य स्वामी अमरानन्दजी

स्वामी अमरानन्दजी का बचपन का नाम सीताराम था उनका जन्म 15 जुलाई 1918 को महाराष्ट्र के मोरगांव में हुआ | उनके पिताश्री का नाम श्री भालचंद्र बापू इनामदार एवं माताश्री का नाम सरस्वती बाई था | सीताराम ने इंटर तक की  पढाई पूरी की और सन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड गया, सेना में व्यापक भारती होने लगी सो सीताराम ने सेना में वाहनों के कार्यशाला में पर्यवेक्षक पद की नौकरी स्वीकार कर ली | लेकिन देश प्रेमी मन को यह नौकरी रास नहीं आई अतः युद्ध समाप्ति के बाद नौकरी का त्यागपत्र दे दिया |

इसके पश्चात् नागपुर में रामकृष्ण आश्रम से सक्रीय रूप से जुड़ गए  तथा उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली  | दीक्षा के साथ ही उनका आध्यात्मिक नाम ‘स्वामी अमरानंद’ हो गया |  उसके पश्चात दस वर्षों तक स्वामी जी नागपुर के रामकृष्ण मठ में रहे | बाद में देश में विभिन्न स्थानों पर स्वामीजी का भ्रमण हुआ और 1972 में उनका जशपुर में आगमन हुआ | स्वामीजी का वनवासी गावों में सदैव भ्रमण होता था | प्रारंभ में यह भ्रमण मोटरसाइकिल से बाद में जीप से प्रवास करते हुए जनजागरण का कार्य चल रहा था | उन्होंने समाज में स्वाभिमान की अलख जगाई | इस कार्य को 33 वर्षो तक करने के पश्चात 4 दिसंबर 2005 को स्वामीजी परलोक गमन कर गए |

श्री भास्करराव कलम्बी

श्री भास्करराव का जन्म 5 अक्टूबर 1919 को भारत के पडोसी देश म्यांमार की राजधानी रंगून के निकट डास ग्राम में हुआ | उनके पिताजी का नाम डॉ शिवराम कलम्बी एवं माता का नाम श्रीमती राधाबाई था | उनके पिताश्री चिकित्सक के नाते म्यांमार में रहते थे | मूलतः कलम्बी परिवार गोवा के मंगेशी के निवासी है | भास्कर की प्रारंभिक पढाई म्यांमार में हुई | बाल्यकाल में ही माता – पिता का दुखद असमय निधन हो गया | आपने हाई स्कूल की शिक्षा मुंबई के राबर्टमनी हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट एवं बी ए की शिक्षा सेंट जेवियर्स कॉलेज से प्राप्त की | कुछ समय नौकरी करते करते 1945 में वकालत – एल एल बी की शिक्षा बम्बई विश्वविद्यालय से पूर्ण की | भास्करराव का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क बाल्यकाल से आया था | 1946 से 1984 तक आपने संघ प्रचारक के नाते केरल जैसे कठिन सामाजिक परिस्थिति में कार्य किया | 1984 में भास्करराव कल्याण आश्रम के कार्य हेतु संगठन में आए | 1984 में आपको राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री घोषित किया गया एवं 1986 में राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनाया गया |

उनके प्रयासों से अनेको कार्यकर्त्ता केरल से वनवासी क्षेत्र में पधारे | उनके सतत प्रवास एवं आत्मीय व्यवहार के कारण कार्यकर्ताओं की संख्या में वृद्धी हुई | आप के प्रयासों के कारण श्रध्दा जागरण का महत्वपूर्ण कार्य को गति मिली | आप मार्गदर्शन में ‘वन साहित्य अकादमी’ का कार्य जबलपुर में प्रारंभ हुआ |

आप के संगठन कौशल के कारण उत्तर पूर्वांचल में जनजाति धर्म संस्कृति रक्षा के विभिन्न प्रयासों को गति मिली एवं जनजाति समाज के अनेक प्रमुख लोग सक्रीय हुए | देश के विभिन्न प्रान्तों में सतत प्रवास करते हुए श्री भास्कर राव ने कल्याण आश्रम के कार्य को एक ऊंचाई तक विकसित किया |

कैंसर के कारण 12 जनवरी 2002 को केरल के एर्नाकुलम में श्री भास्कर जी ने इहलोक की यात्रा पूरी की |

राजा विजय भूषण सिंह देव

जशपुर के राजा देव शरण सिंह का असमय निधन होने के पश्चात उनके पुत्र विजय भूषण सिंह देव का ५ वर्ष की आयु में ही राज्याभिषेक किया गया । राजा विजय भूषण सिंह देव अवयस्क होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनका राज्य ‘कोर्ट ऑफ़ वार्डस’ के अंतर्गत डाल दिया जिसके अधिकार का पद नाम ‘सुपरिटेंडेंट’ था । भारत को स्वतंत्रता मिलाने के पूर्व ही राजा विजय भूषण सिंह देव वयस्क हुए थे ।
कल्याण आश्रम के श्री बालासाहब देशपांडे जी एवं श्री मोरुभाऊ केतकर जी के कार्य से राजाजी परिचित थे । उनके मन में इस कार्य के प्रति आस्था एवं निष्ठा थी । इस कार्य को विभिन्न प्रकार से सहयोग वह समय समय पर करते आए है, इतनाही नहीं तो कार्य के प्रगति की पूछताछ एवं चर्चा में भी सहभागी होते थे । राजा जी ने ही जशपुर में इस कार्य हेतु भमि प्रदान की । राजा विजय भूषण सिंह देव जी अनवरत क्रियाशील रहते हुए अपने जीवन के अंत तक सन 1982, तक कल्याण आश्रम को संरक्षण देते रहे ।
Scroll to Top