VILLAGE DEVELOPMENT (ग्राम विकास)
भारत गाँव में बसता है। गाँव का विकास ही सही में भारत का विकास है। जनजाति समाज भी अधिकतम छोटे-छोटे गावों में, पाडों में, टोले में बसता है। सुदूर वन पर्वतों में बसता है। इस जनजाति समाज का विकास करना ही हम सभी का लक्ष्य है। इस हेतु ग्राम विकास यह एक आयाम के रूप में कार्य कर रहा है। ग्राम विकास के अन्तर्गत शिक्षा, आरोग्य, स्वावलम्बन और संस्कार ऐसे विभिन्न प्रकार के काम होते है। ग्राम की एक छोटीसी समिति बने और अपने गाँव के विकास हेतु विचार करें। पास के किसी नगर के कार्यकर्ता इस काम में सहयोगी बने। सब मिलकर प्रगति पथ पर साथ चलें, परिणामस्वरूप विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है। यह एक लम्बी प्रक्रीया है।
ग्राम विकास की अवधारण लेकर देश में कई व्यक्ति, कई संगठन विभिन्न प्रकार से कार्य कर रहे है। ‘जिसके पास जो अच्छा है उस विचार को ग्रहण करें’ – यह भारतीय विचार है, कल्याण आश्रम भी विभिन्न संगठनों से सम्पर्क रखते हुए अपने कार्यकर्ताओं प्रशिक्षित कर ग्राम विकास का कार्य कर रहा है। ग्राम विकास से जुडे़ कार्यकर्ता प्रयोगशील भी होने चाहिये। स्थानीय परिस्थिति का अध्ययन कर, वहाँ जो उपलब्ध है उसका उपयोग कर अपने कार्य के लिये अनुकूलता खड़ी करना यह कार्यकर्ता की कुशलता पर निर्भर है। नगर में जो सुविधाएँ सहजरूप में उपलब्ध होती है, वैसे गाँवों में नहीं होती, इसलिये प्राप्त परिस्थिति में रहते हुए कार्य के अनुरूप अपने आप को रखना और कार्य को आगे बढ़ना ही आवश्यक होता है। जब हम किसी एक गाँव में कार्य कर रहे है, उसी समय आसपास के चार-पाँच गाँवों का चयन कर ग्राम समूह बनाना (कल्स्टर बनाना) और विभिन्न प्रकार के काम पास पास में खडे़ करने से सभी को एक-दूसरे का लाभ मिलता है।
छोटासा काम शुरू करना, उसको परिणामकारक बनाना तो लाभान्वित व्यक्ति अपने आप अन्य को अपनी बात बताते है, जो कार्य के लिये उपयोगी सिद्ध होता है। बहुत बड़ा काम खड़ा करने से भी कभी कभी छोटासा परिणामकारण अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।
समाज में एक घारणा यह है की सब काम सरकार करेगी, हम केवल देखेंगे। वास्तव में समाज ने स्वयं होकर काम में जुट जाना चाहिये। सामूहिक प्रयासों से ग्राम विकास अधिक अच्छा रूप धारण करता है। जब काम आगे बढ़ता है, उसमे कुछ बाते अवश्य ऐसी होती है जो शासन-प्रशासन अथवा सरकार के माध्यम से होनी चाहिये, उसका भी सहयोग लेना चाहिेये। अर्थात प्रजा व सरकार दोनों के प्रयासों से काम होना चाहिये।
कल्याण आश्रम के कार्यकर्ताओं ने भी कई राज्यों में ऐसे ग्राम समूह चिन्हित किये है। कुछ मात्रा में काम भी चल रहा है। ग्राम विकास में क्रमिक विकास होता है और उससे जुडे़ व्यक्ति को ही उसकी प्रगति दिखाई देती है। कुछ दिन पश्चात जब दर्शनीय स्थिति आती है तो उस गाँव में आनेवाले किसी भी व्यक्ति को परिवर्तन का अनुभव होता है। उस परिवर्तन को सतत कार्य के साथ जोड़ रखना भी एक कार्य का अंग है, अन्यथा प्रगति सदैव स्थीर नहीं होती। ग्राम विकस से जुडे़ कार्यकर्ताओं को जैसे विभिन्न पहलुओं पर कार्य करना है, वैसे सतत कार्यरत रहना भी उतना ही आवश्यक है।
वार्ता